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पञ्चमः परिच्छेदः माधुर्य शौचशौर्य स्मृतिधृतिविनया वाग्मितोत्साहमानास्तेजोधर्मो दृढत्वं प्रियवचनमपि प्राज्ञता दक्षता च । त्यागो लोकानुरागो मतिरुरुकुलता सत्कलावेदिता च स्थैर्य शास्त्रार्थसूक्तिर्वय इति च गुणा नेतृसाधारणास्ते ॥३१२।। नायकस्तद्गुणोपेतः स चतुर्धा प्रभाष्यते । उदात्तललितौ शान्तोद्धती धीरोक्तिपूर्वकाः ॥३१३।। दयालुरनहंकारः क्षमावानविकत्थनः। महासत्वोऽतिगम्भीरो धीरोदात्तः स्मृतो यथा ॥३१४।। तान्म्लेच्छान् विहितागसोऽपि नमय प्राणैः सह श्रीजयेत्यात्तश्रीकैरुणः सुरेशहरिदाद्यब्धिस्थदेवानतिः। ध्यायन्नप्यनहंकृतिः सकलदिग्भूमीशपूज्याज्रिकः श्रीपञ्चास्यपराक्रमो न विकृति सर्वत्र सोऽगानिधीट् ॥३१५।।
नायकके गुण
माधुर्य, शौच, शोर्य, स्मृति, धृति-धैर्य, विनय, वाग्मिता, उत्साह, मान, तेज, धर्म, दृढ़ता, मधुरभाषण, प्राज्ञता-विद्वत्ता, दक्षता, त्यागशीलता, लोकप्रीति, मतिबुद्धिमत्ता, कुलीनता, सत्कलाविज्ञता, शास्त्रार्थकी क्षमता, सुभाषितज्ञता, तारुण्य आदि गुण नायक में होते हैं ॥३१२॥ नायकके भेद
___ उपर्युक्त गुणोंसे युक्त नायक चार प्रकारके होते हैं-(१) धीरोदात्त (२) धीरललित (३) धीरशान्त (४) और धीरोद्धत्त ॥३१३।। धीरोदात्तका स्वरूप
दयालु, घमण्डरहित, क्षमाशोल, अविकत्थन-अपने मुंहसे अपनी प्रशंसा नहीं करनेवाला, अतिबलशाली, अत्यन्त गम्भीर धीरोदात्त नायक होता है ॥३१४॥ उदाहरण
अपराध करनेवाले उन म्लेच्छोंको झुकाओ, प्राणोंके साथ उनपर विजय प्राप्त करो, इस प्रकार श्री और करुणासे युक्त; इन्द्र, सूर्य आदि और समुद्रस्थ देवताओंसे अभिवन्दित; ध्यान करते हुए भी अहंकारसे रहित; सम्पूर्ण दिशाओंके राजाओंसे वन्दित चरण; सिंहके समान पराक्रमी निधिपति भरत कहीं भी विकृति-विकारको प्राप्त नहीं हुए ॥३१५।। धीरललित
विविध प्रकारकी कलाओं में विशेष आसक्तिवाला, सुखी, मन्त्रियोंपर राज्यकार्य१. व्यय-ख । २. प्रकाशते ( प्रभाषते )-ख । ३. करुणैर-ख । Jain Education International
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