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३२४ अलंकारचिन्तामणिः
[ ५।३७४स्वापाङ्गाभेन्दुकान्तीक्षणपरि(वि)चितास्त्यक्तलज्जाः स्मरेषूत्पातश्रीजर्जरान्तःकरणविचलिताः फुल्लराजीवनेत्राः । गाढाश्लेषाभिवाञ्छा गलरवमुखरा वञ्चितालीसमूहाः श्रीकान्तान्सापराधानपि कठिनकुचाः स्निग्धकेशाः सरेयुः ॥३७४॥ स्मरसि मनसि मातः कं सुरोमाञ्चिताङ्गी मदविललितनेत्रा चित्रनारीपटस्था। इव दिगनभिवीक्षा किं ह्रिया ब्रूहि गूढं 'दहतकि मदनः (?) स्वद्रोहिणी शून्यचित्ता ॥३७५।। लिङ्गिनी शिल्पिनी दासी धात्रेयी प्रतिवेशिनी। कारुः सख्यो सुदूत्यः स्युस्तदभावे स्वयं मता ॥३७६॥ विंशतिः स्त्रीष्वलंकाराः सत्त्वजा यौवने मताः । त्रयोऽप्यङ्गभवा भावो हावो हेलेति भाषिताः ॥३७७॥
अमिसारिकाका उदाहरण
अपने नयनके कोणकी कान्तिके समान चन्द्रकान्तितुल्य नयनोंसे परिचित, निर्लज्ज, कामके उपद्रवसे जर्जर, अन्तःकरणसे विचलित, विकसित नयन, गाढ आलिंगनकी इच्छावाली, कण्ठके शब्दसे मुखर, सखि-समूहको ठगनेवाली, कठोर स्तनवाली, चिक्कन केश या योनिवाली अभिसारिकाएँ अपराधी होनेपर भी प्रियतमके पास जायें ॥३७४॥
___ कोई नायिका अपनी धायसे कह रही है-हे मात: ! रोमांचयुक्त, मदसे नाचते हुए नेत्रोंवाली, वस्त्रपटपर चित्रित नारीके समान दिशाओंको न देखनेवाली, अपने ही साथ द्रोह करनेवाली, शून्यचित्त होकर किसे स्मरण कर रही हो, लज्जासे क्या लाभ ? गुप्तरीतिसे कहो, क्या कामदेव जला रहा है ॥३७५॥ दूतियाँ
संन्यासिनी, शिल्पिनी, दासी, धात्री-धाय, पड़ोसिन, कारीगरीको जानकार, धोबिन, नाइन, तमोलिन इत्यादि सखियाँ तथा इन सबके अभावमें नायिका भी दूतीका कार्य करती है ॥३७६॥
स्त्रियोंके सात्त्विक भाव
युवावस्था आनेपर स्त्रियों में बीस सात्त्विक भाव होते हैं। अंगोंसे उत्पन्न भाव, हाव और हेला तीन सात्त्विक भाव हैं ॥३७७॥
१. परिचकितास्-क । २. श्रीकान्तासापराधानपि....-ख । ३. स्मरेयुः-क। ४. दहतकिमधनः-ख ।
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