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अलंकारचिन्तामणिः
पुरोहिते निमित्तादिशास्त्रवेदित्वमार्जवम् विपदां प्रतिकर्तृत्वं सत्यवाक्शुचितादयः ||३३| कुमारे राजभक्तिश्रीकलाबल विनीतताः । शस्त्रशास्त्रविवेकित्वबाह्याङ्गविहृतादयः ||३४|| मन्त्री शुचिः क्षमी शूरोऽनुद्धतो बुद्धिभक्तिमान् । आन्वीक्षिक्यादिविद्दक्षस्स्वदेशज हितोद्यमी ||३५|| सेनापतिरभीरस्त्रशस्त्राभ्यासे च वाहने । राजभक्तो जितायासः सुधीरपि जयो रणे ॥३६॥ देशे मणिनदी स्वर्णधान्याकरमहाभुवः । ग्रामदुर्गजनाधिक्यनदीमातृक्रतादयः ॥३७॥
राजपुरोहित के वर्णनीय गुण
शकुन और निमित्तशास्त्रका ज्ञाता, सरलता, आपत्तियोंको दूर करनेकी शक्ति, सत्यवाणी, पवित्रता प्रभृति गुणों का वर्णन पुरोहितके विषयमें करना अपेक्षित है ॥३३॥
राजकुमारके वर्णनीय गुण -
राजाकी भक्ति, सौन्दर्ययुक्त, अनेक प्रकारकी कलाओंका ज्ञान, बल, नम्रता, शस्त्रप्रयोगका ज्ञान, शास्त्रका अभ्यास, सुडौल हाथ, पैर आदि अंग एवं क्रीडा- विनोद प्रभृतिका राजकुमार के सम्बन्ध में वर्णन करना चाहिए ||३४||
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राजमन्त्रीके वर्णनीय गुण -
राजमन्त्री पवित्र विचारवाला, क्षमाशील, वीर, नम्र, बुद्धिमान्, राजभक्त, आन्वीक्षिकी आदि विद्याओं का ज्ञाता, व्यवहारनिपुण एवं स्वदेश में उत्पन्न वस्तुओंके उद्योग में प्रयत्नशील अथवा स्वदेशमें उत्पन्न और उद्योगशील राजमन्त्रीको होना चाहिए ||३५||
सेनापतिके वर्णनीय गुण
निर्भय, अस्त्र-शस्त्रका अभ्यास, शस्त्रप्रयोग, अश्वादिकी सवारी में पटु, राजभक्त, महान् परिश्रमी, विद्वान् एवं युद्ध में विजय प्राप्त करनेवाला इत्यादि बातोंका सेनापति के विषय में वर्णन करना चाहिए ॥ ३६ ॥
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देश के वर्णनीय विषय
देश में पद्मरागादि मणियाँ, नदी, स्वर्ण, अन्नभण्डार, विशाल भूमि, गाँव, किला, जनबाहुल्य, नहर इत्यादि सिंचाईके साधनोंका वर्णन करना चाहिए ||३७||
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