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द्वितीयः परिच्छेदः कस्मादानीयते नीरं कुतस्तृष्णापरिच्युतिः॥ 'प्रदाहोऽपि कुतो वीरः कीदृशः किं तपोऽकरोत् ॥७२॥
प्रहितो वारितो गतः। प्रहितः कूपात् । वारितः जलात् । अगतः पर्वतात् ॥ पादोत्तरजातिः ।।
नयप्रमाणसंबद्धिः शमः का श्रीमुखेऽपि सा ॥ किं निषेधेऽव्ययं लोकनाशिनो दुःखि किं कुलम् ॥७३॥ कः पुमानन्नसंबुद्धिः का च नश्वरनिस्वने। लेटि कि पदमस्माकमित्यर्थे केन नाश्यते ।।७४॥
पादोत्तरजाति चित्रका उदाहरण
जल कहांसे लाया जाता है ? तृषाको शान्ति कैसे होती है ? प्रदाह कैसे होता है ? वोर कैसा होता है ? तपस्या कैसी होती है ? ७२३।।
उत्तर-'प्रहितः'-कुंआसे जल लाया जाता है। 'वारितः'.--जलसे तृषा शान्त होती है । अगतः-अग्निसे प्रदाह होता है । अडिग रहनेवाला वीर होता है और अविचल भावसे तपस्या को जाती है ।
यह पादोत्तरजातिका उदाहरण है।
नयप्रमाणका सम्बोधन क्या है ? शम-शान्ति क्या है ? वह श्रीमुखमें भी है। निषेध अर्थमें अव्यय कौन है ? लोगोंको नाश करनेवालो क्या है ? दुःखीकुल कौन है ? ॥७३॥
उत्तर-नयमान-नय-प्रमाणका सम्बोधन । क्षमा-शम है। मा–लक्ष्मी है। निषेध अर्थमें 'मा' अव्यय है। मारी-बीमारी लोगोंको नाश करनेवाली है। आतिपीड़ित कुल दुःखी है।
पुरुष वाचक शब्द कौन है ? अन्नका सम्बोधन कौन है ? नश्वर और निस्वन अर्थ में लेट्में कौन पद है ? 'अस्माकम्' इस अर्थ में कौन पद है, किससे नष्ट किया जाता है ॥७४।
उत्तर-'ना' पुरुष वाचक शब्द है। अन्नका सम्बोधन अशन है। नशनादनश्यतीति नाशः–जो नष्ट होता है, तस्य नाद-उसकी ध्वनि । षो-अन्तकर्मणि धातुसे लेट् लकारमें मध्यमपुरुष एकवचनमें 'स्य' । अस्माकम-इस अर्थमें 'नः' पद आता है । येन-यमेन-यमसे लोग नष्ट किये जाते हैं।
१. प्रवाहोऽपि -क । २. प्रहितः वारितः -ख । ३. कुं -ख । ४. नास्यते -क।
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