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६८ अलंकारचिन्तामणिः
[२११२८सेवते इति संध्यादि सजुट् तेन सकारेणेत्यर्थः। शरीरमध्यप्रदेशगतरक्तवर्णेन । पक्षे शरीरशब्दस्य मध्यवर्ती री इत्यक्षरेण । शब्दप्रहेलिका।
श्रीमत्समन्तभद्रायजिनसेनादिभाषितम् ।। लक्ष्यमात्रं लिखामि स्वनामसूचितलक्षणम् ।।१२८॥ वटवृक्षः पुरोऽयं ते घनच्छायः स्थितो महान् । इत्यक्तोऽपि न तं धर्मे श्रितः कोऽपि वदाद्भुतम् ।।१२९।।
वटवक्षो न्यग्रोधपादपः। पक्षे वटो भो माणवक ऋक्षः भल्लकः । घनच्छायो भूर्यनातपः। पक्षे मेघच्छायः। धर्म निदाघे। स्पष्टान्धकम् ।
कः कीदृङ् न नृपैर्दण्ड्यः कः खे भाति कुतोऽम्ब भीः । भीरो: कोदङ् निवेशस्ते नानागारविराजितः ॥१३०॥
नानागाः विविधापराधः । अनागाः ना निर्दोषः पुमान् । रविः आजितः संग्रामात् । विविधगृहशोभितः । आदिविषममन्तरालापकप्रश्नोत्तरम् । आदिवर्ण 'स' और शरीरका मध्यवर्ती वर्ग 'री' इन तीनों अक्षरोंके मिलनेसे 'केसरी' शब्द बनता है । यह केसरी 'सिंह' का वाचक है।।
__ श्रीमान् समन्तभद्र और आचार्य जिनसेन इत्यादिके द्वारा कथित अपने नामसे ही लक्षणको सूचित करनेवाले केवल लक्ष्यको लिखता हूँ ॥१२८॥ स्पष्टान्धकप्रहेलिकाका उदाहरण
तुम्हारे सामने अत्यधिक छायावाला विशाल वटवृक्ष स्थित है, ऐसा कहनेपर भी निदाघ-ग्रीष्ममें धूपसे पीड़ित होनेपर भी अनेक व्यक्तियोंमें से एक भी व्यक्ति उस वटवृक्षका आश्रय ग्रहण नहीं करता है, इस आश्चर्यको बतलाइए ॥१२९॥
वटो + ऋक्षः-सन्धि विच्छेद करनेपर--हे बटो माणवक ! तुम्हारे सामने मेघकी छायाके समान काला भालू स्थित है, ऐसा कहनेपर ग्रीष्म ऋतुमें धूपसे पीड़ित होनेपर भी कोई व्यक्ति उसके पास नहीं गया तो इसमें आश्चर्य ही क्या है। अन्तरालापक प्रश्नोत्तरका उदाहरण
राजाओंसे कौन और कैसा पुरुष दण्डनीय नहीं होता? आकाशमें कौन शोभमान होता है ? कायरको भय किससे लगता है और हे भीरु, तेरा निवासस्थान कैसा है ? ॥१३०॥
उत्तर-नानागारविराजितः । नानागा:-अनेक प्रकारके अपराध; अनागाः ना-निर्दोष पुरुष; निर्दोष पुरुष अपराध न करनेके कारण दण्डनीय नहीं होता। रविः-सूर्य-आकाशमें सूर्य शोभमान होता है। अजितः-युद्धसे; कायरको युद्धसे
१. स्पष्टान्धकमिति प्रहेलिका प्रथमप्रती पादभागे । २. कुतोऽन्धधीः -ख । ३. आगो पराधो मन्तुश्चेति अन्तर्लापिका प्रथमप्रती पादभागे ।
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