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द्वितीयः परिच्छेदः
त्वत्तनो काम्ब गम्भीरा राज्ञो दोर्लम्ब आ कुतः ।
कीदृक् किं नु विगाढव्यं त्वं च श्लाघ्या कथं सती ॥ १३१ ॥ नाभिराजानुगाधिकम् । नाभिः आजानुऊरुपर्वपर्यन्तमिति यावत् । गाधिकं गाधः 'तलस्पर्शप्रदेशः अस्यास्तीति गाधि तच्च तत् कं जलम् । अधिकं नाभिराजानुवर्तिनी चेत् । बहिरालापकमन्त विषमं प्रश्नोत्तरम् ।
त्वम्ब रेचितं पश्य नाटके सुरसान्वितम् ।
-१३३ ]
स्वमम्बरे चितं वैश्यपेटकं सुरसारितम् ॥१३२॥
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चितं निचितम् । स्वम् आत्मीयम् । रेचितं वल्गितम् । वैश्यपेटकं 'वेश्यानां संबन्धिसमूहम् । सुरसारितं देवः प्रापितम् । गोमूत्रिका अस्या बन्धविन्यासः पूर्ववत् ।
तवाम्ब किं वसत्यन्तः का नास्त्यविधवे त्वयि ।
का हन्ति जनमानं वदाद्यैर्व्यञ्जनैः पृथक् ॥ १३३॥
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भय लगता है । नानागारविराजितः अनेक प्रकारके घरोंसे सुशोभित मेरा निवासस्थान है ।
बहिरालापक अन्तविषम प्रश्नोत्तरका उदाहरण -
हे अम्ब ! तुम्हारे शरीर में गम्भीर क्या है ? महाराज नाभिराजकी भुजाएँ कहाँ तक लम्बी हैं ? कैसी और किस वस्तुमें अवगाहन – प्रवेश करना चाहिए ? और हे पतिव्रते ! तुम प्रशंसनीय किस प्रकार हो ॥ १३१३॥
उत्तर - नाभिराजानुगाधिकम् — नाभिः घुटनोंपर्यन्त नाभिराजकी भुजाएँ लम्बी हैं । जलवाले तालाब में अवगाहन करना चाहिए। गामिनी - आज्ञाकारिणी होनेसे मैं प्रशंस्य हूँ ।
नाभि शरीरमें गम्भीर है । आजानुः - गाधिकम् - गाधि कम गहरे कम्-नाभिराजानुगः - नाभिराजकी अनु
हे अम्ब ! उस नाटक में होनेवाले सारसनृत्यको देखिए तथा देवों द्वारा लाये हुए और आकाश में एक स्थानपर एकत्र हुए इस अप्सरासमूहको भी देखिए ॥१३२३ ॥ चितम् - निचितम् -- एकत्र हुए । स्वम् -- आत्मीयम् - निजी । रेचितम् - हस्त - संचालनादि विभिन्न आंगिक क्रियाओंसे युक्त नृत्यको । वैश्यपेटकम् - वेश्याओं के सम्बन्धियों को --- अप्सराओंको । सुरसारितम् - देवों द्वारा लाये हुए ।
यह गोमूत्रिका बन्ध है ।
हे माता, तुम्हारे गर्भ में कौन निवास करता है ? हे सौभाग्यवती ऐसी कौन सी वस्तु है, जो तुम्हारे पास नहीं है ? पेटू व्यक्तिको कौन सी वस्तु मार डालती है ? इन प्रश्नों का उत्तर इस प्रकार दीजिए कि अन्तका व्यंजन एक सा हो और आदि व्यंजन भिन्न प्रकारका हो ।। १३३३ ॥
१. तलस्पशिप्रदेश : - क । २. वैश्यानां ख । ३ बन्धविन्यासः अस्याः इति
- ख !
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