________________
२५० अलंकारचिन्तामणिः
[ ५१९७कन्तोः शास्त्रमधीत्य कोऽपि वृषल: पोनस्तनों स्वस्त्रियं केदारान्त्यगतां निधाय पशुवत् तद्योनिमाघ्राय च । 'व्यादायास्यमुपर्यवेक्षितरदस्तावत्परेणायतागोवद्वृत्तिमता भुजेन निहतस्तत्तद्रतं दृष्टवान् ॥२७॥
तन्मुग्धत्ववेदिनाऽन्येन वृषलेन आगच्छता एकस्मिन् पशी गामारोहति सति अन्यः समागत्य तं निहत्य स्वयमाराहति यथा तथा वर्तमानेन निहत्य निष्कासितः तयोः पशुववृत्तं दूरतो दृष्टवान् ।
अत्रोद्दीपनभावाः स्युस्तदालापकरक्रियाः । भावकेष्वनुभावाः स्युरक्षिविस्फालनादयः ।।९८॥ सात्त्विका अश्रुवैवर्ण्यवैस्वर्याद्या निरूपिताः । कपोलाक्षिविकासि स्यादुत्तमे मृदुभाषणम् । विदीर्णास्यशिरःकम्पि मध्यमे हसितं मतम् ।।१९।। शिरःकम्पाश्रुमत्कायचलं सद्ब्रह्मबिन्दुकम् । आनन्दशपनध्वानमधमे हसितं मतम् ॥१०॥
कोई शूद्र कन्तुके शास्त्र ( कामशास्त्र ) को पढ़कर कठोर पोनस्तनी अपनी पत्नीको क्यारीके पास स्थितकर पशुके समान उसकी योनिको सूंघकर तथा मुख खोलकर दांत दिखा रहा था तब तक आते हुए पशुके समान व्यवहार करनेवाले किसी अन्य व्यक्तिने अपने बाहुसे उसे मारा और उसने उन-उन प्रकारके रतों-मैथुनोंको देखा ॥१७॥
___ उसको सरलताको जाननेवाले आते हुए दूसरे शूद्रने पशुवत् आचरण कर प्रथम व्यक्तिको मारकर भगा दिया, उसके बाद दूरसे प्रथम शूद्र व्यक्तिने दूसरे शूद्र व्यक्तिके नानाविध रतोंको देखा।
हास्यरसकी अन्य सामग्री-यहाँ हास्य रसमें आलम्बनका वार्तालाप और हाथकी क्रिया चेष्टाएँ उद्दीपन विभाव हैं और उन्हीं आलम्बन विभावोंमें आँख फाड़-फाड़कर देखना और नाना प्रकारसे उसे बचाना अनुभाव है ॥९८॥
___ उत्तम पुरुषमें कपोल और आँखको विकसित कर देनेवाले कोमल भाषणका तथा मध्यममें मुख खोलकर सिरको कपाते हुए हसित इत्यादिका वर्णन किया जाता है ॥९९॥
अधम पुरुषमें मस्तकको हिला देनेवाले, आँखोंमें अश्रु ला देनेवाले, समस्त शरीरको कम्पित कर देनेवाले, आनन्द और गाली इत्यादिक शब्दसे युक्त हसित होता है ॥१०॥
१. व्यादायास्यमुपर्य-क-ख । २. पशुवद्रतम्-ख ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org