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अलंकार चिन्तामणिः
श्रेयोमार्गानभिज्ञानिभवगहने जाज्वलदुःखदाव
स्कन्धे चंक्रम्यमाणानतिचकितमिमानुद्धरेयं वराकान् । इत्या रोहत्परानुग्रहसविलसद्भावनोपात्तपुण्यप्रक्रान्तेरेव वाक्यैः शिवपथमुचितान्शास्ति योऽर्हन् स नोऽव्यात् ॥ १४३॥
अत्र न शीघ्रमर्थप्रतोतिः । एवं वस्त्वलंकारप्रतिपत्तावपि पाकद्वयमिदं द्रष्टव्यम् । पुनरन्येऽपि पाका यथासंभवमूह्याः । अथ सामग्री निरूप्यते । शोभा साहायकश्रित्प्रकृतय इव चोत्कर्षंदा रीतयः स्युः शौर्याद्या वा गुणाः स्युः पदसदनुगुणच्छेदरूपा तु शय्या | शय्येवालक्रियाश्चाभरणवदपि वा वृत्तयो वृत्तये वा पाकाः पाकारसास्वादनभिद इति सत्काव्यसामग्र्यसौ स्यात् ॥ १४४॥
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पुनः पुनः अथवा अत्यन्त प्रज्वलित दुःखरूपी वनाग्निसे ग्रस्त स्कन्धवाले वृक्षों के समान इस संसाररूपी काननमें निरन्तर भ्रमण करनेवाले इन बिचारे मोक्षमार्गके अनभिज्ञोंका अत्यन्त आश्चर्यपूर्वक कैसे उद्धार कर दूँ ? इस प्रकार मस्तिष्क में उत्पन्न हुए विचारोंसे दूसरोंपर अनुग्रह करने में जिन्हें आनन्द प्राप्त होता है और निःस्वार्थ कल्याण भावना से प्रेरित हो भव्य जीवोंको मोक्षमार्गका उपदेश देते हैं वे अर्हन्त भगवान् हमारी रक्षा करें ॥ १४३ ॥
यहाँ शीघ्र अर्थकी प्रतीति नहीं होती । इस प्रकार वस्तु और अलंकार के ज्ञान भी समझना चाहिए । अन्य वस्तुओंके रूप, गुणों के आधारपर अन्य पाकोंकी भी कल्पना की जा सकती है |
काव्य-सामग्री -
सहायक आश्रित प्राकृतिक शोभाके समान रीतियाँ काव्यके उत्कर्षको बढ़ानेवाली होती हैं । जैसे - वीरता इत्यादि गुण आत्माको शोभाको बढाते हैं उसी प्रकार ओज इत्यादि गुण काव्यको उत्कृष्टता में वृद्धि करते हैं । जैसे— शय्या विश्रान्ति प्रदान करती है वैसे ही पदों के अनुरूप रचना काव्यका उत्कर्ष बढ़ाती है । जिस प्रकार हारादि अलंकार शोभाकी वृद्धि करते हैं उसी प्रकार उपमा आदि अलंकार भी काव्य शोभाके प्रवर्द्धक हैं । वृत्तियाँ अर्थ- प्रकाशनके कारण काव्यका महत्त्व सूचित करती हैं । रसके स्वादकी भिन्नताको प्रकट करनेवालेको पाक कहते हैं । ये सब पदार्थ काव्यकी सामग्री हैं ॥ १४४ ॥
१. साहायिकश्रीप्रकृतय-ख । २ ख प्रती 'वृत्तये' पदं नास्ति ।
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