________________
पञ्चमः परिच्छेदः
कलभे करिशब्देन तज्जन्यत्वं निवेद्यते । इत्यादियुक्तशब्दानां गणस्यार्थोऽपि बुध्यताम् ॥ २६८ ॥ इति दोषप्रकरणम् ।
-२७१ ]
श्लेषो 'भाविकसंमितत्व समतागाम्भीर्य रीत्युक्तयो माधुर्यं सुकुमारता गतिसमाधी कान्तिरौजित्यकम् । अर्थव्यक्तिरुदारता प्रसदनं सौक्ष्म्योजसो विस्तरः सूक्ति: प्रौढिरुदात्तता पुनरपि प्रेयान्ससंक्षेपकः ॥ २६९ ॥ अनेकेषां पदानां तु यत्रेकपदवत्स्फुटम् । भासमानत्वमाख्यातः श्लेषाख्यः कविना गुणः ॥२७०॥ अशरणमशुभमनित्यं दुःखमनात्मानमावसामि भवम् । मोक्षस्तद्विपरीतात्मेति ध्यायन्तु सामयिके ||२७१।
गुण
मुक्ताहार इस शब्द के कथन मात्रसे अन्य रत्नोंके धारण करनेको निवृत्ति हो जाती है । इसी प्रकार धनुषपर ज्या शब्दसे ही चाप चढ़ानेका निश्चय होने लगता है
॥२६७॥
कलभ शब्द में करि शब्दसे उसकी जन्यता प्रतीत होती है, इत्यादिसे युक्त शब्दों के समूहका अर्थ समझना चाहिए || २६८ ||
दोष प्रकरण समाप्त |
२
१. भविक - ख । २. गाम्भीर्य रीत्युक्तयो - ख ।
२९९
( १ ) श्लेष, ( २ ) भाविक ( ३ ) सम्मितत्व ( ४ ) समता ( ५ ) गाम्भीर्य ( ६ ) रीति ७) उक्ति ( ८ ) माधुर्य ( ९ ) सुकुमारता ( १० ) गति ( ११ ) समाधि ( १२ ) कान्ति ( १३ ) ओजित्य ( १४ ) अर्थव्यक्ति (१५) उदारता (१६) प्रसदन ( १७ ) सौक्ष्म्य ( १८ ) ओजस् ( १९ ) विस्तर ( २० ) सूक्ति ( २१ ) प्रौढ़ (२२) उदात्तता ( २३ ) संक्षेपक और ( २४ ) प्रेयान् ये चौबीस काव्यके गुण माने गये हैं || २६९ ॥
१. श्लेषके गुण
जहाँ अनेक पदोंकी एक पदके समान स्पष्ट प्रतीति हो वहाँ श्लेष नामक काव्यगुण माना जाता है || २७० ॥ यथा
शरण रहित, अशुभ, नश्वर, आत्मज्ञान विहीन संसार में निवास करता हूँ । मोक्षका स्वरूप इसके विपरीत है । सामायिक में संसार और मोक्ष के इस स्वरूपका चिन्तन करे ॥२७१ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org