________________
२८४ अलंकारचिन्तामणिः
[५।२०९छन्दोरीतियतिक्रमाङ्गरवसंबन्धार्थसंधिच्युतं व्याकीणं पूनरुक्तमस्थितिसमासं सर्गलप्तं तथा । वाक्याकीर्णसुवाक्यगर्भितपतत्प्रोत्कृष्टतापक्रमभङ्गन्यूनपरोपमाधिकपदं भिन्नोक्तिलिङ्गे तथा ॥२०९।। समाप्तपुनरात्तं चापूर्णमित्येवमीरिताः। चतुर्विंशतिधा वाक्यदोषा ज्ञेयाः कवीश्वरैः ।।२१०॥ छन्दोभङ्गवदुक्तिर्या छन्दोभ्रष्टमिदं यथा । जिनेश्वरं वन्दामहे भव्यबन्धुं त्वां विभवम् ॥२११॥ रसानुरूपरीतिर्नो यत्र रीतिच्युतं यथा। अखण्ड'चण्डदोर्दण्डमण्डिता हा मृता इमे ॥२१२॥ करुणेऽक्षराडम्बरमनुचितम् । विश्रान्तिभ्रंशनं यत्र यतिम्रष्टमिदं यथा। जिनेशपदयुग्मं वन्दे भक्तिभरसंनतः ॥२१३।।
चौबीस वाक्य दोष-(१) छन्दश्च्युत, ( २ ) रीतिच्युत, ( ३ ) यतिच्युत, (४) क्रमच्युत, (५) अंगच्युत, ( ६ ) शब्दच्युत, (७) सम्बन्धच्युत, (८) अर्थच्युत, (९) सन्धिच्युत, (१०) व्याकीर्ण, (११) पुनरुक्त, (१२) अस्थितिसमास, (१३) विसर्गलुप्त, (१४) वाक्याकीर्ण, (१५ ) सुवाक्यभित, (१६) पतत्प्रोक्तकृष्टता, ( १७ ) प्रक्रमभंग, ( १८ ) न्यूनपद, ( १९) उपमाधिक, (२०) अधिकपद, ( २१ ) भिन्नोक्ति, ( २२ ) भिन्नलिंग, ( २३ ) समाप्त, पुनरात्त और ( २४ ) अपूर्ण ॥२०९-२१०॥
(1) छन्दश्च्युत-जिस पद्यमें छन्दका भंग हो उसे छन्दोभ्रष्ट या छन्दश्च्युत कहते हैं। यथा-भव्य बन्धु तथा तुझ मुक्त जिनेश्वरको हम प्रणाम करते हैं। यहाँ छन्दोभंग या छन्दश्च्युत दोष है ॥२११॥
(२) रीतिच्युत-जिस पद्यमें रसके अनुरूप रीति-पदगठन न हो वहां रीतिच्युत नामका दोष होता है । यथा-हा ! खेद है कि अखण्ड और भयंकर बाहुदण्डोंसे सुशोभित ये वीर मृत्युको प्राप्त हुए ॥२१२॥
. करुण रस में अक्षरोंका आडम्बर सर्वथा अनुचित है।
(३) यतिच्युत-जिस पद्यमें यतिका भंग हो उसे यतिभ्रष्ट या यतिच्युत दोष कहते हैं । यथा-भक्तिके भारसे अच्छी तरह झुका हुआ मैं जिनेश्वरके दोनों चरणोंको नमस्कार करता हूँ ॥२१३॥
१. दण्ड-ख । २. तथा -ख ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org