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अलंकारचिन्तामणिः
५।१३०उभौ शृङ्गारबीभत्सौ द्वौ च वीरभयानको । उभौ रौद्राद्भुतो हास्यकरुणौ वैरिणो मिथः॥१३०।। शृङ्गारजनितो हास्यो रौद्रोत्थः करुणो मतः। अद्भुतो जायते वीराद् बीभत्साच्च भयानकः ।।१३।। शान्तः सर्वोत्कृष्टत्वात् केनचिन्मैत्रों विरोधं च न लभते । जीवस्य परिणामत्वान्न रसो रक्ततादिभाक् । तथापि काव्यमार्गेण कथ्यते तत् क्रमोऽधुना ।।१३२! श्यामाभो विष्णुरिन्दुद्युतिरिभवदनस्त्विट्कषायो यमो वै रक्तो रुद्रोऽपि गौरविडपि सुरपतिधूम्रवर्णो महादिः। कालो नीलश्च नन्दी कनकरुचिरजः शुभ्रवर्णः परादि ब्रह्मा शृङ्गारमुख्ये क्रमत इह मतो वर्णभेदोऽधि दैवम् ॥१३३॥
रसोंका परस्पर विरोध
शृंगार और वीभत्स; वीर और भयानक; रौद्र और अद्भुत; हास्य और करुण ये परस्पर विरोधी रस है॥१३०॥
रसोंकी निष्पत्तिका हेतु.- .
हास्यरसकी निष्पत्ति शृंगाररससे; करुणको रौद्ररससे; अद्भुतकी वीररससे; और भयानककी निष्पत्ति वीभत्सरससे होती है ॥१३१॥
सभी रसोंमें अत्यन्त श्रेष्ठ होनेके कारण शान्तरसका किसी रससे मैत्रोभाव या विरोध नहीं है।
थद्यपि जीवका परिणाम होने के कारण श्रृंगार आदि रसोंमें रक्त, श्याम आदि वर्ण नहीं हो सकते, तो भी काव्यको पद्धतिके अनुसार उनका अब वर्णन करते हैं ॥१३२॥ रसोंके वर्ण और देवता
__ शृंगाररसका वर्ण श्याम और देवता विष्णु हैं । हास्यरसका वर्ण चन्द्रमाके समान शुभ्र और देवता गणपति हैं । करुण रसका वर्ण कपोत चित्रित और देवता यमराज हैं। रौद्ररसका वर्ण रक्त और देवता रुद्र हैं। वीररसका वर्ण गौरकान्ति और देवता इन्द्र हैं। भयानकरसका वर्ण धूम्र और देवता महाकाल है। बीभत्सरसका वर्ण नील और देवता काल हैं । अद्भुतरसका वर्ण सुवर्णके समान पीत और देवता ब्रह्मा हैं । शान्तरसका वर्ण श्वेत और देवता शान्तमूर्ति परादि ब्रह्म हैं ॥१३३॥
१. परिणमत्वात्-ख । २. कालोनिलश्च नन्दित-ख । ३. देवम्-ख ।
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