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चतुर्थः परिच्छेदः भूमिपाणिग्रहजनितं रोमहर्षणं धीरोदात्ततया भरतचक्रिणा महाभिषेकाम्बुकणव्याजेन प्रच्छादयता मन्त्रिणो वीक्षिताः। व्याजोक्त्या किंचित्साम्योन्मीलनं कथ्यते--
वस्तुना मीलनं यत्र प्रच्छायेतान्य वस्तुवत् । सहजागन्तुकाभ्यां तत्तिरोधानान्मिथो द्विधा ॥१७७।।
वस्तुना वस्त्वन्तरं यत्र प्रच्छादितं स मीलनालंकारः । स द्वेधा'सहजेनागन्तुकतिरोधानं, आगन्तुकेन सहजतिरोधानं चेति ।
क्रमेण यथाश्रीमद्दिग्विजयाभिमुख्यवति सच्चक्रेश्वरे शत्रुषु । क्वापि त्रस्तवपुष्षु लीनतनुषु प्रध्वानकैदुन्दुभैः । गम्भीरैः परिगजितेषु जनिताः कामज्वरालिङ्गिताः । शत्रूणां मरुजोष्णतां न च विदन्त्यङ्गेषु लग्नामपि ॥१७८॥
भूमिके करग्रहणसे उत्पन्न रोमांचको धोरोदात्त होने के कारण भरत चक्रवर्तीने महाभिषेक जलकणके बहानेसे छिपाते हुए मन्त्रियों की ओर देखा ।
व्याजोक्तिसे कुछ समता रखने के कारण मीलनालंकारका स्वरूप प्रतिपादित किया जाता है। मीलनालंकारका स्वरूप---
जिसमें अन्य वस्तु के समान सहज और आगन्तुक वस्तुके द्वारा परस्पर कोई वस्तु छिपा दी जाय, तो भेद वाला मोलनालंकार कहा जाता है ॥१७७॥
एक वस्तुसे दूसरी वस्तु जहां आच्छादित कर दी जाय, वहाँ मीलनालंकार है । यह दो प्रकारका है-(१) सहज वस्तुसे आगन्तुक वस्तुका तिरोधान और (२) आगन्तुक वस्तुसे सहज वस्तुका तिरोधान ।
रूप अथवा गुण साम्यसे दो पृथक् वस्तुओंका एकाकार हो जाना ही मोलित या मोलनालंकार है। यह अभेद प्रधान आरोपमूलक अलंकार है। इसमें साधर्म्यके कारण निर्बल वस्तु इस प्रकार छिप जाती है कि उसका भेद कुछ भी लक्षित नहीं होता। सहज वस्तुसे आगन्तुकका तिरोधानरूप मीलनका उदाहरण
श्रीमान् भरत चक्रवर्तीके दिग्विजयके लिए तैयार होनेपर गम्भीर तथा विशेषध्वनिवाले युद्ध वाद्यके बन जानेपर भयभीत तथा कहीं अपने शरीरको शत्रुओंके द्वारा छिपा लेनेपर उत्पन्न कामज्वरसे युक्त शत्रुनारियाँ अपने शरीरमें लगती हुई मार्गश्रम जनित अन्य उष्णताका अनुभव नहीं करती हैं ॥१७८॥
१. रोमहर्षम् -ख । २. वस्तु यत् -क-ख । ३. आगन्तुकतिरोधानं चेति-ख ।
४. त्रस्तवपुष्व....-ख । ५. र्दुन्दुभेः -ख । ६. वनिता.... -स । Jain Education IR national For Private & Personal Use Only
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