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अलंकारचिन्तामणिः एषां स्वरूपमुदाहरणं चभीराकस्मिकसंत्रासाच्चित्तसंक्षोभणं यथा । क्रीडन्ती सरसीशानं सालिलिङ्गधनध्वनेः ॥२८॥ रोषादिकारणं शङ्कानिष्टाभ्यागमशङ्कनम् । मनोऽस्तीशिनि रोमाञ्चादालिभिः किमबोधि तत् ॥२९॥ मनो मे पत्यो निष्पन्दमास्ते तन्मनः सखीभिः पुलकैरवबुद्धं किमिति शङ्का। वैवारतिहेतुर्या ग्लानिः शक्त्यपचेतृता। भूभृज्जिष्णुसुपावकोरुयमरक्षः श्रीप्रचेतो जगत्प्राणश्रीदमहेडनेकपमहा भोगेशसत्कच्छपाः । भर्तारः सकला भुवोऽपि विधिना ये स्थापितास्तेऽप्ययं धतु नोरसि तं क्षमास्मि कदली गर्भातिमृद्वि ध्रुवम् ॥३०॥
(१५) उद्बोध (१६) निद्रा (१७) अवहित्था (१८) तर्क (१९) लज्जा (२०) आवेग (२१) मोह (२२) सुमति (२३) अलसता (२४) भ्रान्ति (२५) अपस्मार (२६) चिन्ता (२७) रोग (२८) सुप्ति (२९) औत्सुक्य (३०) विषाद (३१) चपलता (३२) औग्रय और (३३) कार्पण्य ये ३३ संचारीभाव हैं ॥२७॥ संचारीमावोंके स्वरूप और उदाहरण
भीः (भय)-अकस्मात उपस्थित भयके कारण होनेवाले चित्तविक्षेपको 'भीः' कहते हैं । जैसे-तालाब में कोड़ा करती पार्वतीने मेघके गर्जनसे भयभीत होकर शिवका आलिंगन किया ॥२८॥
शंका-रोष इत्यादिके कारण अनभिमत वस्तुको प्राप्तिके सन्देहको शंका कहते हैं। यथा-मेरा मन चक्रवर्ती में लगा है, इस तथ्यको मेरे रोमांचसे सखियोंने जान लिया है क्या ? ॥२९॥
___ मेरा मन पतिमें सुस्थिर है, मेरे इस मनको रोमांचके कारण क्या सखियोंने जान लिया है, यह शंका है ।
ग्लानि--चेहरेपर उदासी और दुःखके कारण जो शक्तिकी क्षीणता है, उसे ग्लानि कहते हैं। यथा---पर्वत, इन्द्र, अग्नि, महाशक्तिशाली यम, नैऋत, वरुण, वायु, कुबेर, शिव, दिग्गज, शेष और कच्छप इत्यादि जो भी भुवनाधिपति ब्रह्माके द्वारा निर्मित हैं, वे सभी इस चक्रवर्ती के स्वरूप ही हैं। अतएव कदलीके भीतरी हिस्से के समान कोमल शरीरवाली मैं इसे निश्चित रूपसे कैसे धारण कर सकती हूँ ॥३०॥
१. दलिभिः -ख । २. भोगीश-ख ।
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