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२४२ अलंकारचिन्तामणिः
[५।६३शंकाग्लानिदैन्यालस्यचिन्ताव्रीडावेगविषादजडतानिद्रासुप्तिभयापस्मारावहित्थारोगोन्मादहीनाः शेषाः । वीरे निर्वेदसहिता रौद्रोक्ताः सर्वे । भयानके धृतिमदब्रीडागर्वसुप्तिनिद्राहर्षावहित्थामतोोग्रतारहिताः शेषाः । बीभत्सेऽद्भुते च भयचिन्तादयो यथासंभवमूह्याः । शान्ते धृतिनिर्वेदी।
रसभावाभिनेतत्वेऽधिकृते नर्तके रसाः। भावा न किं तु सभ्येषु स्मृतपूर्वरसादिषु ॥६३॥ उद्देशकमाभावेऽपि रसनिरूपणस्य भावनिरूपणेपूर्वत्वात् भावा उक्ताः । अथ दशावस्थाः शृङ्गाररसस्य अङ्कुरितत्वेपल्लवितत्वहेतवः कथ्यन्ते। रत्युल्लाससमुद्भावाः खलु दशावस्थाश्च चक्षुर्मनः प्रीत्यासक्तियुगं पुनर्भवि तथा संकल्पको जागरः। संप्रोक्ता तनुता तथा च विषयद्वेषस्त्रपा नाशनं मोहो मूर्च्छनमप्यतो मृतिरिति प्रोक्ता दशा विच्युतैः ॥६४॥
ग्लानि, दैन्य, आलस्य, चिन्ता, बीड़ा, आवेग, विषाद, जड़ता, निद्रा, सुप्ति, भय, अपस्मार, अवहित्था, रोग और उन्मादसे भिन्न शेष सभी पाये जाते हैं । वीर रसमें निवेदके साथ रौद्ररस में गिनाये भावोंके अतिरिक्त अन्य सभी व्यभिचारी भाव मिलते हैं। भयानक रसमें धृति, मद, बीड़ा, गर्व, सुप्ति, निद्रा, हर्ष, अवहित्या, मति, ईर्ष्या और उग्रतासे रहित अन्य सभी व्यभिचारी भाव पाये जाते हैं। बीभत्स और अद्भुत रसमें भय, चिन्ता इत्यादि यथासम्भव अनेक रह सकते हैं। शान्त रसमें प्रायः धृति और निर्वेद भाव पाये जाते हैं ।
___ रसकी स्थिति-रस और भावका अभिनय करनेवाले अधिकारी नतंकमें शृंगारादि रसोंकी स्थिति रहती है; पर पहले रस इत्यादिके स्मरण करनेवाले सभ्यों में भाव नहीं रहते हैं ॥६॥
उद्देश क्रमके नहीं रहने पर भी रस-निरूपणमें भाव-निरूपण कारण है, अतएव भावोंका निरूपण पूर्व में किया गया है।
इसके अनन्तर शृंगार रसको अंकुरित और पल्लवित करनेवाली कामजन्य दस अवस्थाओंका वर्णन करते हैं ।
कामकी दस अवस्थाएँ-रति और उल्लाससे उत्पन्न कामकी दस अवस्थाएँ हैं-(१) दृष्टिका अभीष्टमें लगना (२) मनका अभीष्टमें लगना (३) अभीष्टकी प्राप्तिके लिए मन में संकल्पका होना (४) जागरण (५) कृशता (६) विषय-मात्रके प्रति द्वेषका होना (७) लज्जाका नाश (८) मोह (९) मूर्छा (१०) मृति-इस प्रकार आचार्योंने कामजन्य अवस्थाओंका वर्णन किया है ॥६४॥
१. पूर्वकत्वात्-ख । २. पल्लवितत्वपुष्पितत्वफलितत्वहेतवः कथ्यन्ते-क-ख ।
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