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-१७२ ]
चतुर्थः परिच्छेदः
उक्त च-
उच्यते वक्तुमिष्टस्य प्रतीतिजननक्षमम् ।
१
धर्मं यत्र वस्त्वन्यत्समासोक्तिरियं यथेति ॥ अन्यथोदित वाक्यस्य काक्त्रा वाच्यावलम्बनात् । अन्यथा योजनं यत्सा वक्रोक्तिरिति कथ्यते ॥ १७० ॥
आसक्तो निर्भरत्वेन श्रियां मे वल्लभः सखि ।
3
अम्ब न्यूना श्रियोऽपि त्वं किं करोषि लघुं स्वकाम् ।।१७१।।
१६७
त्वमपि श्रियः सकाशात् न्यूना न भवसि अतस्त्वय्यपि पतिरासक्त एव किमिति स्वकां लघुं करोषीति काक्वा प्रतीतिः ।
स्वभावमात्रार्थपदप्रक्लृप्तिः सा या स्वभावोक्तिरियं हि जातिः । जातिक्रिया द्रव्यगुणप्रभेदाः नीचाङ्गनात्रस्तसुताधिरम्या ॥ १७२ ॥
समासोक्तिका लक्षण अन्यत्र बताया है
विवक्षित अर्थ में प्रतीति उत्पन्न करनेके लिए जिस अलंकार में उसके योग्य समानधर्मवाले किसी अन्य अर्थको उक्ति की जाती है, उसे समासोक्ति अलंकार कहते हैं ॥ १७० ॥
वक्रोक्ति अलंकारका स्वरूप
किसी अन्य प्रकारसे कथित वाक्यको उसके वाच्यार्थके आधारपर काकुके द्वारा दूसरे प्रकारसे योजना कर देनेपर वक्रोक्ति अलंकार होता है ॥ १७० ॥
वक्रोक्तिका उदाहरण
हे सखि ! मेरा प्रियतम लक्ष्मीमें सम्पूर्णतया आसक्त हो गया है । सखि, उक्त वार्तालापका उत्तर देती हुई कहती है कि हे अम्ब ! क्या तुम लक्ष्मीसे कम हो, तुम अपने में तुच्छ बुद्धि क्यों करती हो अर्थात् अपनेको छोटा क्यों समझती हो ॥ १७१ ॥
तुम भी श्रोसे कम नहीं हो, अतएव तुझमें तेरा पति आसक्त है ही तुम अपनेको तुच्छ क्यों समझती हो । काकुसे उक्त अर्थकी प्रतीति होती है ।
स्वभावोक्ति अलंकारका स्वरूप
जो केवल स्वभाव के वर्णन करनेवाले पदोंसे रचित हो, उसे स्वभावोक्ति अलंकार कहते हैं । निश्चय ही जाति है । जाति, द्रव्य और गुणके भेदसे यह अलंकार अनेक प्रकारका होता है । भयभीत पुत्रवाली अत्यन्त रमणीय यह अंगना सुन्दरी है ॥ १७२ ॥
१. खप्रतो यत्रेति पदं नास्ति । २. यथा ॥ इति ॥ ख । ३. सखी - ख । ४. अम्ब इत्यस्य पूर्वम् ( स्वभावोक्तिः ) -ख । ५. प्रभेद.... - ख ।
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