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-१९०] चतुर्थः परिच्छेदः
१७३ जातेतिक्रियागुणद्रव्यविरोधे चत्वारो भेदाः ॥१८७२।।
'क्रियायाः क्रियागुण द्रव्यविरोधे त्रयो भेदाः । गुणस्य गुणद्रव्याभ्यां सहविरोधे द्वौ भेदौ । द्रव्यस्य द्रव्येण साधं विरोधे चैको भेदः ॥
एवं विरोधभेदा दश। पद्माकरोऽपि चक्रेशो जडाशय इति स्तुतः। जातेर्जात्या विरोधोऽयं श्लेषेणेति निरूपितः ॥१८८।। धोवरोऽपि न मीनादेर्बाधाकारी निधीश्वरः । जातेः क्रियाविरोधोऽयं श्लेषेणेति निरूपितः ॥१८९॥ धीवरोऽपि रथाङ्गेशः स्यादज्ञानीति नोदितः। जातेगंणविरोधोऽयं श्लेषेणेति निरूपितः ॥१९०॥
जातिका जाति, क्रिया, गुण और द्रव्यके विरोधमें चार, क्रियाका क्रिया, गुण और द्रव्यके विरोधमें तीन; क्रियाका गुण और द्रव्यके विरोधमें दो एवं द्रव्यका द्रव्यके विरोधमें एक, इस प्रकार विरोधाभासके दस भेद होते हैं ।
जातिसे जातिका विरोधामास- पद्माकर होनेपर भी चक्रवर्ती भरत जड़ाशय ऐसा कहकर प्रशंसित हुए हैं। यहाँ पद्माकर और जड़ाशयमें विरोध है, जो पद्मा नामक निधि का स्वामी है, वह जड़ाशय जड़ाशय-मन्दमति कैसे हो सकता है। पद्मनिधिका स्वामी जलाशय वाला सम्भव है अथवा भरत पद्माकर होनेपर भी जड़ाशय-उदासीन-संसारको प्रवृत्तियोंसे उदासीन हैं। यहां श्लेष द्वारा जातिके साय जातिका विरोध वर्णित है ॥१८८॥
जातिसे क्रियाका विरोधाभास
धीवर होनेपर भी भरत मीन इत्यादिको कष्टप्रद नहीं हैं, जो धीवर-मछा होगा, वह मत्स्योंके लिए कष्टप्रद क्यों नहीं होगा, अतः विरोध है। परिहार के लिए धीवर-बुद्धिमान् अर्थ किया जाता है । यह जातिका क्रियासे विरोध है ॥१८९॥ जातिका गुणसे विरोधाभास
धोवर होनेपर भी चक्रवर्ती भरत मूर्ख नहीं हैं, यहां जातिका गुणके साथ विरोध है; श्लेष द्वारा अर्थ करनेपर-धीवर-बुद्धिशालीसे विरोधका परिहार हो जाता है ॥१९०॥
१. खप्रती 'क्रियायाः' इति पदं नास्ति । २. निरूपितम् -ख । Jain Education International
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