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द्वितीयः परिच्छेदः बिन्दुच्युतकम् । घटानां समूहानां घटना 'तया। पक्षे घटनया घण्टा संघटनया । त्रिधात्तः। त्रिमदस्राविणः।।
मकरन्दारुणं तोयं धत्ते त्वत्पुरखातिका । साम्बुजं क्वचिदुबिन्दु चलन्मकरदारुणम् ॥१३६।। बिन्दुमबिन्दुच्युतकम् । समजं घातुकं बालं क्षणं नोपक्षते हरिः। का तुकं स्त्री हिमे वाञ्छेत्समजं घातुकं बलम् ।।१३७।।
मात्राच्युतकप्रश्नोत्तरम् । समजं सामजं घातुकं हिंस्रकम् । का तु कं स्त्री का स्त्री तुकं तु । समजं घातकम् । बलम् । समजं घातकं बालम इति च पदच्छेदः। समाने जङ्धे यस्याः सा समजङ्घा । समजं बलमिति द्विस्थाने मात्रालोपः । उच्चारणकाले मात्राच्युतिः । अभिप्रायकथने मेलयेत् । यथा समजमित्यत्र सामजं बलमित्यत्र बालम् ।
यह बिन्दुच्युत पद्य है। उच्चारणकालमें बिन्दु नहीं रहता, पर अर्थ करते समय रहता है । अतः द्वितीय अर्थ निम्न प्रकार है
देवि ! दो, अनेक अथवा बारह इस प्रकार तीन भेद रूप श्रुतज्ञानके धारण करनेवाले एवं घण्टानाद करते हुए आकाशमें विचरण करनेवाले ये श्रेष्ठ देव ज्ञानयुक्त अपने सुन्दर मुख द्वारा शोभमान हो रहे हैं।
हे राजन् ! तुम्हारे नगरकी खातिका--परिखा चलते हुए मगर-मच्छोंसे भयंकर, ऊपर उठते हुए जलकणोंसे भरपूर, मकरन्द-परागसे अरुण और कमलयुक्त जल धारण करती है ॥१३६३॥
यह बिन्दुमत् बिन्दुच्युतकका उदाहरण है । यहाँ श्लोकके प्रारम्भमें 'मकरदारुणम्' पाठ था, पर बिन्दु देकर 'मकरन्दारुणम्' कर दिया गया है और अन्तमें 'चलन्मकरन्दारुणम्' पाठ था, पर यहां बिन्दुको च्युत कर 'चलन्मकरदारुणम्' कर दिया गया है। मात्राच्युतक प्रश्नोत्तरका उदाहरण
हे माता ! सिंह अपने ऊपर घात करनेवाली हाथियोंकी सेनाको क्षणभरके लिए भी उपेक्षा नहीं करता और हे देवि ! शीत ऋतुमें कौन सी स्त्री क्या चाहती है ? ॥१३७६॥
इस श्लोकमें प्रथम चरणके 'बालम्' शब्दमें आकारको मात्रा च्युतकर 'बलम्' पाठ पढ़ना चाहिए । इस पाठसे बलम्-सेना अर्थ निकलता है। अन्तिम चरणमें 'बलम्' शब्दमें 'आकारको मात्रा बढ़ाकर 'बालम्' पाठ समझना चाहिए; जिससे पुत्र अर्थ निष्पन्न होता है। इसी प्रकार प्रथम चरणमें 'समजम्' के स्थानमें आकारको मात्रा बढ़ाकर 'सामजम्' पाठ समझना चाहिए, जिससे 'हाथियोंको' अर्थ १. तथा स्थाने यथा -ख ।
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