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चतुर्थः परिच्छेदः उपमानन्वयो स्यातामुपमानोपमास्मृती । द्विसाधारणसाधर्म्यमालालङ्कृतयस्त्विमाः ॥५॥ रूपकं परिणामश्च संदेहो भ्रान्तिमानपि । अपह्नवस्तथोल्लेखो भेदसाधय॑हेतुकाः ॥६॥ प्रतीप-प्रतिवस्तूपमा-सहोक्ति-निदर्शनाः। दृष्टान्तो दीपकं तुल्ययोगिन्येत्यतिरेकतः॥७॥
साधय॑के भेद
__ साधर्म्य तीन प्रकारका होता है-(१) भेदप्रधान (२) अभेदप्रधान (३) और भेदाभेदोभयप्रधान । सादृश्य भेदकी व्यवस्था
किसी आचार्यका मत है कि उपमान और उपमेयमें स्वतः भिन्नता होनेके कारण सादृश्यमें शाब्दिक ही भेद होता है, वास्तविक नहीं। इस मतकी समीक्षा करते हुए कहते हैं कि यह कथन असत् है-गलत है; क्योंकि सादृश्य वस्तुस्वरूप होता है। यदि सादृश्यको वस्तुरूप न माना जाये, प्रत्युत् शब्दगत माना जाये तो गर्दभ और खरगोशके शृंगोंमें भी उपमान-उपमेय भाव होने लगेगा। अतः सादृश्य वस्तुरूप होता है शाब्दिक नहीं।
___ उपमा और अनन्वय अलंकार उपमान तथा उपमाकी स्मृतिवाले माने जायेंगे । तात्पर्य यह है कि सादृश्यको केवल शब्दगम्य माननेपर उपमा और अनन्वय अलंकारकी स्थिति स्पष्ट नहीं हो पायेगी। दो भिन्न वस्तुओंके बीच सादृश्य या साधर्म्यका प्रतिपादन उपमा है और अनन्वयमें उपमेयको ही उपमान कहा जाता है। अतः वास्तविक सादृश्यके अभावमें उक्त दोनों अलंकार उपमाको स्मृतिवाले ही माने जायेंगे । आशय यह है कि जहां उपमान उपमेय वस्तुरूप नहीं है, बल्कि उपमान और उपमाको स्मृतिमात्र ही रहती है, वहाँ उपमा और अनन्वय अलंकार होते हैं । किन्हीं दो समानधर्मियों में साधर्म्य दीख पड़ता है तो मालासहित निम्नलिखित अलंकार हो जाते हैं । जैसे--मालारूपक, रूपक आदि ॥५॥
इसी प्रकार परिणाम, सन्देह, भ्रान्तिमान्, अपह, नुति, उल्लेख इत्यादि । पूर्वोक्त सभी अलंकार भेदसाधर्म्यहेतुक होते हैं ।।६॥
प्रतीप, प्रतिवस्तूपमा, सहोक्ति, निदर्शना, दृष्टान्त, दीपक तथा तुल्ययोगिता ये अलंकार अतिरेक होनेसे अर्थात् साधर्म्यका आधिक्य होनेसे अभेदसाधर्म्यहेतुक होते हैं ॥७॥ १. -उपमेयोपमास्मृती-ख । २. तुल्ययोगोऽन्ये व्यतिरेकतः क-ख । १५
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