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१२६ अलंकारचिन्तामणिः
[४॥३४श्रौती तद्धितगा पूर्णा यथा भरतचक्रिणः । शेषवत् कूर्मवद्वाही धुरीणे विबभौ धरा ॥३४॥ आर्थी वाक्यगता पूर्णा यथार्थिजनसंततेः । अभीष्टफलदत्वेन चक्री कल्पद्रुणा समः ॥३५।। आर्थी समासगा पूर्णा यथा हेमाद्रिसंनिभः । जिनाभिषिक्तगन्धाम्बुपवित्रत्वेन चक्रभृत् ॥३६॥ आर्थी तद्धितगा पूर्णा यया तेजसि सूर्यवत् । गाम्भीर्येऽम्भोधिवत् तौङ्ग्ये मेरुवच्चक्रवर्त्यभात् ॥३७॥
तेन समस्तेन सदृश इति सदृशार्थे' विहितस्य वत्प्रत्ययस्योपादाने आर्थी। तत्र तस्येवेतीवार्थे विहितस्य वत्प्रत्ययस्य स्वीकारे श्रौती। एषामुदाहरणेषु भरतस्य कोतिरित्याधुपमेयवाचिनामिन्दोश्चान्द्रीत्याद्युपमानवाचिनां व्याप्तसर्वभूरित्यादिसाधारणधर्मवाचिनां यथेत्यादिसादृश्यवाचिनां च चतुर्णी रचितत्वेन पूर्णात्वम् । तद्धितगता श्रौती उपमाका उदाहरण
भरत चक्रवर्तीके शेष और कच्छपके समान भार धारण करने में समर्थ भुजदण्डोंमें पृथिवी सुशोभित हुई ॥३४।। वाक्यगता आर्थी पूर्णोपमाका उदाहरण
चक्रवर्ती अभिमत फलदायक होनेके कारण याचकगणोंके लिए कल्पवृक्षके समान हैं ॥३५॥ समासगता आर्थी पूर्णोपमाका उदाहरण
चक्रवर्ती जिनेश्वर पर अभिषिक्त सुगन्धित जलसे पवित्र होने के कारण सुमेरु पर्वतके समान है ॥३६॥
समस्त 'हेमाद्रिसन्निभः' पदके कारण समासगता आर्थी उपमा है। तद्धितगता आर्थी पूर्णोपमाका उदाहरण
वह चक्रवर्ती तेजमें सूर्यके समान, गम्भीरतामें समुद्रके समान और ऊंचाईमें मेरुके समान सुशोभित हुआ ॥३७॥
___ उसके समान या उसके सदृश इस प्रकार सदृश अर्थमें विहित 'वत्' प्रत्ययका कथन रहनेसे आर्थी तद्धितगता पूर्णोपमा है। 'तत्र तस्येव' इस प्रकार इवार्थमें विहित वत् प्रत्ययके स्वीकार करने पर श्रौती उपमा आती है। पूर्वोक्त समस्त उदाहरणोंमें भरत चक्रवर्तीकी कोत्ति इत्यादि उपमेयवाची; 'इन्दोः, चान्द्रो' इत्यादि उपमानवाची;
१. सदृशार्थे इत्यस्य स्थाने इवार्थे-ख । २. तस्य वेतीवार्थे-ख। ३. पूर्णत्वम्-क ।
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