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अलंकारचिन्तामणिः
[२११५२तमोऽत्तु ममतातीत मेमोत्तममतामृत । ततामितमते तातमतातीतमृतेऽमित ॥१५२।।
गूढतृतीयचतुर्थान्यतराक्षरद्वयविरचितयमकानन्तरपादमुरजबन्धः । तमोऽत्तु अज्ञानं निराकरोतु । ममतातीत ममत्वहीन मम मे उत्तममतामृत प्रधानागमामत । ततामितमते विशालानन्तबोध । तातमत तात इति मत । अतीतमृते हीनमरण । उपमातीत । भो जिन मम तमो निवारयतु भवानित्यर्थः ।
ग्लानं चैनश्च नस्स्येन हानहीन घनं जिन । "अनन्तानशन ज्ञानस्थानतनन्दन ॥१५३।।
"निरोष्ठ्ययथेष्टैकाक्षरान्तरितमुरजबन्धः । गोमूत्रिकाषोडशदलपमं च । ग्लानं च ग्लानि च एनश्च पापं च नः अस्माकं स्य विनाशय, हे इन स्वामिन्
गूढतृतीयचतुर्थानन्तराक्षरद्वयविरचितयमकानन्तरपादमु रजबन्धका उदाहरण
हे पार्श्वनाथ ! आप ममतारहित हैं-पर पदार्थों में 'यह मेरा है और मैं इनका हूँ' इस प्रकारका भाव नहीं रखते । आपका आगमरूपी अमृत अत्यन्त उत्कृष्ट है तथा आपका केवलज्ञान अत्यन्त विस्तृत और अपरिमित है। आप सबके बन्धु, नाशरहित और अपरिमित हैं। आपके दोनों चरणकमल मेरे अज्ञानान्धकारको नष्ट कर ॥१५२३॥
___ यह गूढ तृतीय-चतुर्थमें से कोई दो अक्षरसे विरचित यमक अनन्तरपाद मुरजबन्धका उदाहरण है। 'तमोऽत्तु'-अज्ञानान्धकारका नाश करें। ममतातीत'मोह-राग-द्वेष रहित अथवा ममत्वभावसे रहित । मम-मेरा। 'उत्तमममतामृत'प्रधान आममतामृत । 'ततामितमते'-विशाल और अपरिमित विषयक्षेत्रवाले केवलज्ञानके धारी । 'अतीतमृते'-मरणरहित । 'उपमातीत'-निरुपमेय । हे पार्श्वभट्टारक, मेरे अज्ञानान्धकार अथवा जन्म-मरणरूप भव-संसारका निवारण कीजिए । मुरज और गोमूत्रिका षोडशदल पद्मका उदाहरण
हे मुनि सुव्रतनाथ ! आप क्षयरहित हैं, कर्मरूप शत्रुओंको जीतनेवाले हैं, अनन्त चतुष्टयसे युक्त हैं, अपरिमित गुणोंसे सुशोभित हैं, नाशरहित हैं, अथवा आहारविहार रहित हैं, केवलज्ञानधारी हैं। प्रणत पुरुषोंकी समृद्धि करनेवाले हैं । हे प्रभो ! हमारी ग्लानि-राग-द्वेष और पापपरिणतिको दूर कोजिए ॥१५३३॥
यह पद्य ओष्ठ्य अक्षरसे रहित यथेष्ट-एकाक्षरान्तरित मुरजबन्धका उदाहरण है । गोमूत्रिका षोडशदल कमलका भी यही उदाहरण है।
'ग्लानं च ग्लानि च एनश्च पापं च नः' हमारो रागद्वेष और पाप परिणति
१. ममोत्तममतामत-ख । २. उत्तममतमृत-ख। ३. अनन्तानज्ञान स्थानस्थानत नन्दन -ख। ४. निरोष्ठ्य यथेकक्षरमुरजबन्धः -ख । ५. विनाशाय -ख ।
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