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द्वितीयः परिच्छेदः सुखकरधर्मनिदेशी कः स्यात्संबोधयाशु बधहरिणम् । 'तित्थयर पूजणत्थं केण सदा जांति अमरिंदा ॥११७॥
'विमाणेन वि विशिष्टा मा लक्ष्मीः। अणनमण दिव्यध्वनिर्यस्यासौ । विमाण जिनः । एण । तोथंकरपजनार्थ केन सदा यान्ति अमरेन्द्रा इत्यस्य विमानेन । संस्कृतप्राकृतजातिः ।।
जहाति कोदशी कान्तं वधः संबध्यतां रिपुः। येनेन्दुकरिवं नाथं कान्तेयं सबुभुक्षेयिम् ॥११८॥ नोरतारे । रतान्निष्क्रान्ता नीरता अरे संस्कृतकर्णाटजातिः । संस्कृतप्राकृतापभ्रंशपैशाचिकभेदाच्चतस्रो भाषास्सन्ति । तदुक्तम्
उदाहरण
सुखप्रद धर्मका निदेश करनेवाला कौन है ? हे विद्वन् ! हरिणवाचक शब्दका सम्बोधन क्या है ? तीर्थकरको पूजा करनेके लिए देवेन्द्र लोग कैसे जाते हैं ॥११७६॥
उत्तर-विमाणेन-वि = विशिष्टा, मा= लक्ष्मी, विमा--अणनम्-अण् = दिव्यध्वनि । विकमा अण् यस्य सः-विमाण् = जिनः, अर्थात् सुखप्रद धर्मका निदेश करनेवाले जिन हैं। हरिणवाचक शब्दका सम्बोधन एण है। तीर्थंकर पूजाके लिए इन्द्रगण विमान से जाते हैं।
यह संस्कृत-प्राकृत जातिका उदाहरण है। पद्यका पूर्वार्ध संस्कृतमें है और उत्तरार्द्ध प्राकृतमें लिखा गया है ।
__ कैसी वधू अपने प्रियतमको छोड़ती है। रिपुवाचक शब्दका सम्बोधन क्या है ? बुभुक्षित पतिने कान्ताको क्यों बुलाया ? बतलाइए ॥११८॥
उत्तर-नीरतारे-रतात् निष्क्रान्ता = नीरता-सुरतसे विरत वधूने प्रियतमको छोड़ा । शत्रुवाचक शब्दका सम्बोधन 'अरे' है । बुभुक्षित पतिने 'नीरतारे'-जल लानेके लिए कान्ताको बुलाया।
यह संस्कृत-कर्णाटक जातिका उदाहरण है। पद्यका पूर्वार्ध संस्कृत भाषामें और उत्तरार्द्ध कर्णाटक भाषामें लिखा गया है । 'नोरतारे' शब्द भी कन्नड़ भाषाका है। काव्यरचनाके लिए भाषा-विषयक नियम
___ संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और पैशाचिक भेदसे चार प्रकारको भाषाएँ होती हैं । कहा भी है
१. तिन्थयरपजणंठं-क। २. विमाणेण-क। ३. एनेन्दु करेवं-क। ४. कतियं-ख । ५. अस्य संस्कृतं यथा-कथमाहूतवान् नाथः कान्तां वै संबुभुक्षितः॥ अस्य प्रश्नस्य उत्तरं कार्णाटभाषायां 'नीरतारे' इति तदर्थः जलमानय इति -कप्रती पादभागे।
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