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द्वितीयः परिच्छेदः
गतप्रत्यागतं तत्स्यात् प्रतिलोमानुलोमतः ॥ यदुत्तरेण तन्मध्यवर्णलोपादनेकधा ॥९२॥ "धुनि: संचलता नृणां संबुध्येत कवोशिना । मुनिः संबुध्यतां लोकोत्कृष्टचारित्रमण्डितः ॥९३॥ क्षोभिरव । वरभिक्षो ॥
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का पुरोर्मोनिनो दृप्तिर्नृसुरासुरतोषिणी । पालितं केन षट्खण्डगतं भूचक्रमादितः ||१४|| नाशितेरभा । नाशिता इरा वाक् यस्यासौ नाशितेरः । मौनी तस्य भा । अन्यत्र भारतेशिना ॥ कोsस्ति मध्ये सुनन्दाया: कामिन्या अग्रिमप्रभोः । सुरासुरनराधीशः कथं संबुध्यते पुरुः ||१५|| निमा कृशत्वम् । अन्यत्र | भो मानित ॥
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गत प्रत्यागतका लक्षण
उलटा और सीधा पढ़नेसे तथा उसके बोचके अक्षर के लोपवाले उत्तरसे अनेक प्रकार से सम्पन्न रचना - विशेषको गत प्रत्यागत कहते हैं ॥ ९२३ ॥
कविराज श्रेष्ठ कविके द्वारा अच्छी तरह चलते हुए मनुष्योंकी ध्वनि तथा 'लोकोत्कृष्ट चारित्रसे सुशोभित मुनिका सम्बोधन क्या है ? बतलाइए ॥ ९३३ ॥
उत्तर - क्षोभिरव अर्थात् चलते हुए मनुष्योंकी ध्वनिका सम्बोधन क्षोभिरव है । इसीको उलटकर पढ़ने से 'वरभिक्षो' — श्रेष्ठ भिक्षुक मुनिका सम्बोधन है ।
मनुष्य, देव और दानवोंको सन्तुष्ट करनेवाली मोनी मौनव्रतधारी व्यक्तिकी कान्ति कैसी है ? तथा सर्वप्रथम षट् खण्ड पृथ्वीमण्डलका शासन किसने किया है ॥ ९४३ ॥ उत्तर--नाशितेरभा - नाशित- नष्ट की हुई है, इरा - वाणी जिसकी, उसे नाशितेर :- मौनी कहते हैं, उसकी आभा 'नाशितेरभा' कहलाती है । मौनी - मौनव्रत धारीको कान्ति' नाशितेरभा' कही जाती है । इसको उलटा पढ़नेसे हुआ - 'भारतेशिना ' अर्थात् सर्वप्रथम षट्खण्ड पृथ्वीमण्डलका शासन भरत चक्रवर्तीने किया ।
आदि तीर्थंकर ऋषभदेवकी कामिनी सुनन्दामें क्या है ? देव, दानव और मानवोंके अधीश कुरु ऋषभदेवका सम्बोधन क्या है ? ।। ९५३ ॥
उत्तर--' - ' तनिमा' - कृशत्व अर्थात् सुनन्दायें कृशता है अर्थात् वह कृशांगी 1 'निमा' को उलटकर पढ़ने से 'मानित: ' हुआ अर्थात् कुरुके लिए 'मानित' सम्बोधन है । 'भो मानित' का प्रयोग करना चाहिए ।
१. ध्वनिः संचलतां क । २. क्षुभ संचलने । क्षुभ्यन्ति ते क्षोभिणः तेषां रवः । मूलग्रन्थे निम्नभागे । ३. वृषभस्य — मूलग्रन्थे पादभागे । ४. सुरासुरनगाधोशैः - ख ।
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