________________
-८९ ]
द्वितीयः परिच्छेदः राः। जीवः । अपम लक्ष्मीहीन ॥ सत्प संतं । पातोति ॥ 'अद करूं कौरवं श्यति निराकरोतीति कुरुश ॥ आजि रणं ईर्णा गता। सत् । खेत् खे एतेति ।। अजन्ममे चन्महीनश्रीयुते ।। अं । कु। पापकुत्सेषदर्थेषु कु इत्यमरः । शश । अतनं सततगमनं । गोमूत्रिकाजातिः ।
एकेन वाऽथवा द्वाभ्यामक्षरैः सर्वदिग्गतैः ॥ उत्तरैयत्तदाख्यातं सर्वतोभद्रमजसा ॥८७।। शंभुस्मरारौ लिटि किं च रूपं शूरेश्वरामन्त्रणमत्र किं भोः । करोति शोघ्र पलितानि का च द्वोपेऽत्र विद्योतति यत् किमिष्टम् ।।८८।। वार्धक्ययग्वाक् च विहङ्गमः को निस्वप्रतोषीदृगनिष्टकारी। संबध्यतां कश्च सुरोऽपि चक्रधारा च मेषः कथमत्र वाच्यः ।।८।।
निराकरण करनेवाला । आसनम्-सिंहासन-सभामें स्वामी-राजाके लिए सिंहासन सुखप्रद है । आजीर्णा-आजि रणं ईणा गता-युद्धभूमिमें गयो हुई योद्धाओंकी पंक्ति ही श्रेणी है । उपल-पत्थरका सम्बोधन उपल है । सत्-नक्षत्रका सम्बोधन सत् है। खेत्-आकाशगामी खेट-ग्रह हैं। अजन्म-जन्म-मरण रहित सिद्धोंमें आठ गुण निवास करते हैं।
कृष्णको 'अ' कहा जाता है। कुत्सा-निन्दावाचक शब्द 'कु' है। शशखरहा चन्द्रमामें स्थितका सम्बोधन है। अतनम्-गमन-चन्द्रमामें निरन्तर गमन रहता है। यह गोमूत्रिका जातिका उदाहरण है ।
कमलके समान कोमल और सुन्दर चरणवाले हे वर्धमान स्वामी, आपने राग, द्वेष, मोह, जन्म, मरण आदि अठारह दोषोंको नष्ट कर दिया है, अतः आप मेरे लिए कामनाशक शास्त्रका उपदेश कोजिए ॥८६॥
सर्वतोभद्र चित्रका कक्षण
एक, दो या सभी दिशाओं में स्थित उत्तरवाले अनेक अक्षरोंसे जो रचना विशेष को जाय, उसे विद्वानोंने सर्वतोभद्र कहा है ॥८७॥
शम्भु और स्मरारि अर्थमें कौन शब्द है ? लिट् लकारमें कौन रूप है ? श्रेष्ठ वोरके लिए सम्बोधन क्या है ? शीघ्र ही केश कैसे पक जाते हैं ? इस भूमण्डलमें क्या चमकता है ? ॥८८३॥
वृद्धावस्थासे युक्त वाणी क्या है ? पक्षि-वाचक शब्द कौन है ? निर्धनको सन्तुष्ट करनेवाला कौन है ? नेत्रोंको कष्टकारक क्या है ? देवताके लिए सम्बोधन क्या है ? चक्रधाराको क्या कहते हैं ? मेष-मेढेका वाचक शब्द कौन है ? ॥८९३।।
१. आद-क। २. स्यति -ख । ३. एतीति -क । ४. जन्महीन -ख ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org