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अलंकारचिन्तामणिः
[२१८३यत्रैकान्तरितं पाठयमूधिः क्रमतोऽक्षरम् ।। तां हि गोमूत्रिकामाह सर्वविद्याविशारदः ॥८३॥ कस्त्याज्यो मुनिनास्य योगविषयः कः कीदृगामन्त्रणम् निस्वे सन्नररक्षके लिटि पदं मुक्तिः क्व का पाण्डवे । संबुद्धिः सदसि प्रभोः सुखकरं का योधृमालाऽश्मनः संबुद्धिश्च किमक्षमम्बरचरः कः क्वासतेऽष्टौ गुणाः ।।८४|| कृष्णं ब्रूहि च कुत्सादिवाचि संबोधनं च किम् ।। चन्द्रस्थे नित्यमिन्द्वादौ किं जिनः कथमीयते ॥८५॥ राजीवोपमसत्पाद सन्मते कुरु शासनम् ।
आजीर्णोपलसत्खेदजन्म मेऽङ्कशशातनम् ।।८६।। चाहिए । इन वाक्योंका प्रथम अक्षर उन-उन कोष्ठकोंमें पूर्व ही स्थित समझना चाहिए। इस प्रकार रचना करनेसे काकपद जाति चित्र बनता है। गोमूनिका चित्रका लक्षण और उदाहरण
जिस रचनामें ऊपर और नीचेके क्रमसे अक्षर एकान्तरित करके पढ़े जायें, विद्वानोंने निश्चय ही उस रचनाविशेषको गोमूत्रिका कहा है ॥८३३॥
___ मुनियोंके द्वारा त्यागने योग्य क्या है ? मुनिका योगविषय कौन है ? दरिद्रके लिए सम्बोधन क्या है ? अच्छे मनुष्यके रक्षकके लिए लिट्में कौन पद है ? मुक्ति कहाँ है ? पाण्डवके लिए सम्बोधन क्या है ? सभामें स्वामीके लिए सुखकर क्या है ? योद्धाओंकी श्रेणी क्या है ? पत्थरके लिए सम्बोधन पद कौन है ? नक्षत्रका सम्बोधन क्या है ? आकाशगामी कौन है ? आठों गुण कहाँ है ? ॥८४३॥
कृष्णको क्या कहते हैं ? कुत्सादिवाचक शब्द कौन है ? चन्द्रमामें स्थितका सम्बोधन क्या है ? चन्द्रमामें निरन्तर क्या रहता है ? जिनेश्वर क्यों पूजे जाते हैं ? ॥८५३॥
__उत्तर-रा:-धन-सम्पत्ति मुनियोंके द्वारा त्याज्य है । जीवः-आत्मा मुनियोंका योगविषय है। अपम्-लक्ष्मोहीन दरिद्रका सम्बोधन है । सत्-सज्जनोंके रक्षकका सम्बोधन है, इसका लिट्में अदः पद होता है। सन्मते-सन्मत-सम्यक् सिद्धान्तके अनुसरणसे मुक्ति है। कुरुश पाण्डवोंका सम्बोधन है, इसका अर्थ है कौरवोंका
१. क्रमतोऽक्षरं -ख । २. निःस्वे -ख । ३. जिनः कथमोज्यते इत्युक्ते सर्वश्लोकार्थः । राजीवोपमसत्पादराजीवस्य कमलस्य उपमे सतीपादे यस्य तस्य संबोधनम् । भोः सन्मते भो वर्धमानस्वामिन् । आजीर्णोपलसत्खेदजन्म आजीर्ण नाशे उपलसती प्रकाशे स्वदश्च जन्म च स्वेदजन्मनी उपलसती स्वेदजन्मनी यस्य तस्य संबोधनम् । अंकुशशातनं अंकुशस्य स्मरस्य शातनं नाशनं शास्त्रम् । मे कुरु ।
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