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द्वितीयः परिच्छेदः 'अरग्वधाश्च के विद्याधरीणां को मनोहरः॥ शोभमानानघः शान्तिर्दष्कृपः कस्तमोहरः ।।८।।
राजतरवः राजदमल: राजसदयः। पक्षे राजतो जयाद्धः । तत्रत्यकोकिलारवः। पक्षे राज्ञां दमं रातीति । राजसमज्ञानं तेन सहिता दया यस्य । राज्ञः चन्द्रस्य नक्षत्राणां च अनमयः उदयः ॥
काकस्येव पदं यत्र वर्णव्यावर्तनं भवेत् ।। ऊर्ध्वाधःक्रमतो धोरैस्तत्काकपदमुच्यते ।।८२॥
'प्रथमपंक्तिप्रथमकोष्टादारभ्य द्वितीयपंक्तिद्वितीयतृतीयौ पुनः प्रथमपंक्तिचतुर्थपञ्चमौ पुनद्वितीयपंक्तिषष्ठं पुनः प्रथमपंक्तिसप्तमाष्टमौ पुनद्वितीयपंक्तिनव'म ततः प्रथमपंक्तावेकादशं द्वितीयपंक्ती द्वादशत्रयोदशौ प्रथमपंक्तिचतुदर्शपंचदशौ इति पठेत् ॥ पुद्वितीयपंक्तिप्रथमकोष्टादारभ्य प्रथमपंक्तिद्वितीयजतीयादिक्रमेण तानि त्रीणि वाक्यानि सन्नयेत् ।। एतेषां वाक्यानामाद्यवर्ण तत्तत्कोष्ठेषु पृथगेव स्थितं विद्यात् । काकपदजातिः ।।
आरग्वधा–अमलतास कौन हैं ? विद्याधरियोंके मनको हरण करनेवाला कौन है : सुशोभित होनेवाला पापविहीन-पुण्यात्मा कौन है ? शान्ति क्या है ? दुष्कृप कौन है ? अन्धकारको दूर करनेवाला कौन है ॥८१३॥
उत्तर-राजतरवः--अमलतास सुन्दर वृक्ष हैं। कुबेरके उद्यानमें होनेवाली कोयलको कूज विद्याधरियोंके मन का हरण करती है। राजाओंको दमन करनेवाला चक्रवर्ती पुण्यात्मा है। इन्द्रियोंका दमन-इन्द्रिय-निग्रह करना शान्ति है। राजस्अज्ञानसहित दया दुष्कृप है। राजदमल-देदीप्यमान प्रकाश अन्धकारको दूर करता है। अर्थात् चन्द्रमा और नक्षत्रों का उदय अन्धकारको दूर करनेवाला होता है। काकपद चित्रका लक्षण
जिस रचनाविशेषमें कौवेके पैरके समान ऊपर और नीचे अक्षरोंका व्यावर्तनउलट-पुलट हो, उसे विद्वानोंने काकपद कहा है ॥८२३॥
प्रथम पंक्तिके प्रथम कोष्ठकसे प्रारम्भ कर द्वितीय पंक्तिके द्वितीय, तृतीय; पुनः प्रथम पंक्तिके चतुर्थ, पंचम; पुनः द्वितीय पंक्तिका षष्ठ;, पुनः प्रथम पंक्तिके सप्तम, अष्टम; अनन्तर द्वितीय पंक्तिके नवम, दशम; पश्चात् प्रथम पंक्तिके एकादश; द्वितीय पंक्तिके द्वादश, त्रयोदश; तदनन्तर प्रथम पंक्तिके चतुर्दश और पंचदश वर्णों को लिखना चाहिए । पश्चात् द्वितीय पंक्तिके द्वितीय, तृतीय इत्यादि क्रमसे तीन-तीन वाक्योंको लिखना
१. आरग्वधाश्च-क । २. विजयाद्धः -क, जयाधः -ख । ३. अयनं अयः उदयः -ख । ४. पाठक्रमः कथ्यते प्रथमपंक्ति....क । ५. कोष्ठादारभ्य -ख । ६. कोष्ठादारभ्य -ख । ७. त्रीणि त्रीणि -क। ८. तत्तत्कोष्ठेषु -ख ।
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