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द्वितीयः परिच्छेदः रिमाय अरिहिंसक । अरीन् अन्तःशत्रून् मिनाति हन्तीति अरिमाय ततः १. अरिमाय पूर्वोक्तोऽपि नात्रसंबन्धनीयः। हे ननारिमाय । किमुक्तं भवति हे
मानक्षम । अमान । आर्यातिनाशन उरो ननारिमाय मां विनाशात् अस्य नय । येन ननो नये अहं पूजां लभे इत्यर्थः ।
चक्रं त्वालिख्य मध्ये विलिखतु सदृशं वर्णमेकं चतुष्कं तद्द्वारासु प्रलेख्यं प्रविलिखतु महादिक्षु चत्वारि विद्वान् । मध्ये रूढानि सप्तेतरवरदिगरेष्वष्टरूढानि कुर्यात् कुर्याद् बाह्यासु दिक्षु प्रलिखतु विषमान् वा समान् श्लोकचक्रे ॥७७॥ चक्रप्रश्नजातिः ॥ सर्वोत्तरादिवर्णैर्यत् कृतकणिकमष्टभिः । दलैद्विद्वयक्षरापूर्णैः पद्मं तत्प्रणिगद्यते ॥७८॥ को दुःखी स्यात् कुराजः को, जिनो मोहाय किं व्यधात् । किमलुब्धकुलं कीदृग्मुनिः सिद्धो गुणाः क्व न ॥७९।।
पकें। यहाँ न और नो दोनों प्रतिषेध वाचक है, अतः दोनों प्रतिषेध प्रकृत अर्थको
• करते हैं।
उपर्युक्त श्लोकके खण्डशः अर्थ करनेपर ७३, ७४, ७५वें पद्योंमें पछे गये गेल प्रश्न का उत्तर निहित है। ७६वें पद्य से 'कथं जिन ईड्यः ' का उत्तर प्राप्त हो
ये चक्रप्रश्नजातिके उदाहरण हैं । ... ध लिखनेकी विधि
- विद्वान् चक्र लिखकर उसके मध्यमें सदृश वर्ण 'न' लिखे। पश्चात् उसके द्वारोंमें चार वर्ण लिखे। अनन्तर महादिशाओंमें चार वर्ण लिखे। मध्यमें सात वर्ण और आरा-चक्रोंमें आठ वर्ण लिखे। विषम वर्गों को बाह्य दिशामें और सम वर्गों को में लिखे ॥७७॥ मबन्धका लक्षण: अष्टदल कमल बनाकर उसकी कणिकामें ऐसे वर्णका विन्यास करे, जिसका ध अन्य समस्त उत्तर वर्णों के साथ हो। पश्चात् दो-दो वर्ण कमलपत्रों में लिखनेसे न्धकी रचना होती है ॥७८६।। । दुःखी कौन होता है ? कुराज-दुष्टराजा कैसा होता है ? जिनेन्द्रने मोहके लिए
किया ? अलोभियोंका कुल कैसा होता है ? मुनि कैसा होता है ? सिद्ध कैसे होते 'गुण कहाँ नहीं हैं ? ॥७९॥
. अरिमायः -ख । २. कुर्याद्वाह्यस्वष्टा विदिक्षु -क ।
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