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अलंकारचिन्तामणिः
[ २५७सुरामः । सुरा । आमः। सुरामः दद्मः । यामिनीप्रतिमायोगे कीदृशं यतिनां कुलम् । कं वन्दन्ते सुरा नित्यं काम किमकरोत्सुधीः ॥१७॥ अभ्यभवं । अभि 'भयरहितं । अभवं संसारहीनजनं । अभ्यभवं निराकरोमि स्म । एवं सर्वलकारेषु बोद्धव्यम् ॥ नामाख्यातजातिः। तर्कतः सूत्रतः शब्दादुद्भवं शास्त्रवाक्यतः।। ताक्यं सौत्रं च शाब्दं च शास्त्रार्थं चेति तद्भवेत् ॥५८॥ मुनिसंबोधनं कीदृक् को वधूजनतोषकृत् । जैनेभ्यो रोचते सर्वकुवादिभ्यो न को वद ॥५९।। अनेकान्तः । न विद्यते इ. कामः यस्यासी अनिः तस्य संबोधनम् । ताय॑जातिः॥
उत्तर–सुरामः । सुरा-मदिरा सेवनसे मनुष्य विह्वल हो जाता है । आमःकच्चा घड़ा अधिक समयतक जलको धारण नहीं कर सकता है। बुद्धिमान व्यक्ति सभीका हित करनेवाले शास्त्रको रचना करते हैं । सुरामः--दमः ।
___ रात्रि प्रतिमायोग धारण करनेपर यतियोंका समूह कैसा रहता है ? देव निरन्तर किसकी पूजा करते हैं ? विद्वान् व्यक्तिने किसकी इच्छा की है ? ॥ ५७१ ॥
उत्तर--अभ्यभवं-अभि अर्थात् रात्रि प्रतिमायोग धारण करनेवाले यतियोंका समूह निर्भय रहता है। अभवम्-संसारहीनजनं-द्रव्यकर्म, भावकर्म और नोकर्म रहित सिद्धोंको देव नित्य वन्दना करते हैं। अभ्यभवं-निराकरोमि-बुद्धिमान् व्यक्ति सन्देह निराकरण करनेकी इच्छा करते हैं। इस प्रकार सभी अलंकारोंमें समझना चाहिए । यह नामाख्यातजातिका उदाहरण है । तार्य-सौन-शाब्द-शास्त्रवाक्य चित्रके लक्षण
___ यदि तर्क, सूत्र, शब्द और शास्त्रवाक्यसे उद्भव-उत्पत्ति प्रतीत हो तो उन्हें क्रमशः ताळ, सौत्र, शाब्द और शास्त्रार्थ चित्र कहते हैं ॥५८३॥ उदाहरण
मनियोंका सम्बोधन कैसा होता है ? वधुजनोंको कौन सन्तुष्ट करता है ? जैनियोंको अच्छा लगता है और समस्त कुवादियोंको नहीं, ऐसा कौन है ? बतलाइए ॥५९३॥
उत्तर-अनेकान्तः । जिसमें विषयवासना नहीं है, उसे 'अनि' कहते हैं और उसका सम्बोधनमें 'अने' होता है । यही मुनियोंके लिए सम्बोधनपद है। कान्त-प्रिय
१. भयहीनं-क। २. जिनं-क। ३. शब्दाद्युद्भवं-क। ४. शास्त्रोत्थं-ख ।
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