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द्वितीयः परिच्छेदः सावरागाः। अव समन्ताद् रञ्जनमवरागः तेन सहिताः। 'सो ओकारसहिता। अरा रा इति शब्दरहिता। गा इत्यत्र विसर्जनीयः स्थित एव तथा सति गौरिति रूपसिद्धिः। विषमजातिः॥
संबोधनं किं सुरलोकनाथे भ्रमद्विरेफा सुरभिस्फुटा का। का याति नाकाज्जिनपूजनार्थं वृत्त किमाबापजातिलक्ष्म ॥५४॥ इन्द्रमालावृत्तजातिः॥ सुप्तिङन्तप्रभेदेन सुयोगित्वाद्विधोत्तरम् ।। एकमेव भवेद् यत्र तन्नामाख्यातमुच्यते ॥५५॥ "सेविता विह्वलं कर्तुं का क्षमा सुचिरं घटः । नाम्भो धरतिकोवृक्षं शास्त्रं कुरुथ धीधनाः ॥५६॥
उत्तर-सावरागाः । अच्छी तरहसे रञ्जनको अवराग कहते हैं तथा अवरागसे जो युक्त हो, उसे सावराग कहते हैं । सो = ओकारसहित । अरा-रा इति शब्दरहित
-शब्दहीन । 'गाः' इस शब्दमें विसर्ग है ही और प्रथमा विभक्तिमें 'गौः' यह रूप बनता है । अर्थात् पूर्वतः रागी व्यक्ति नष्ट होते हैं। उत्तरसे पशुवाचक 'गौः' शब्दकी उत्पत्ति होती है। इन्द्रमाला वृत्तजातिका उदाहरण
___ सुरलोकनाथमें सम्बोधन क्या है ? सुगन्धिको स्फुटतासे आकृष्ट हो भ्रमण करनेवाले भ्रमर किसपर आते हैं ? स्वर्गसे जिनपूजनके लिए कौन जाती है ? उपजाति लक्षण वाला वृत्त कौन है ? ॥ ५४१ ॥
उत्तर-इन्द्र + माला = इन्द्रमाला । सुरलोकनाथका सम्बोधन इन्द्र है, मालाकी गन्धसे भ्रमर आकृष्ट होते हैं । स्वर्गसे जिनपूजनके लिए इन्द्रमाला-देवाङ्गनाएँ आती हैं अथवा इन्द्र-समूह पूजा करने आता है। नामाख्यात चित्रका लक्षण
जिसमें एक ही 'सु' के सम्बन्धके कारण सुबन्त और तिङन्तके भेदसे दो प्रकार का उत्तर प्रतीत हो, उसे नामाख्यात चित्र कहते हैं ॥ ५५३॥ उदाहरण
सेवन करनेपर कौन चीज मनुष्यको विह्वल कर देती है ? कैसा घट अधिक समयतक जल-धारण नहीं कर सकता ? बुद्धिमान् कैसे शास्त्रको रचना करते हैं ? ॥ ५६३॥
१. सा ओ ( ऽण ) कारसहिता-ख। २. ता-ख । ३. किमाब्रह्यपजाति-ख ।
४. इन्द्रमालावृत्तनामजाति:-क-ख । ५. सेवित्वा विह्वलं। ६. कोदृविकं क-ख । Jain Education Integrational For Private & Personal Use Only
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