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अलंकार चिन्तामणिः
वायुपेक्षे हरिक्ष्मासु स्मरे संबुद्धयः कवी ।
का ब्रूहि विशून्याङ्ग नो भात्यपि विकस्वरे ॥ ५१ ॥
विस्रशून्याङ्ग । भो औमगन्धिन् । तनुरहित । पक्षे विकस्वरे । इत्यत्र विस्र' विशब्दसकार रेफमात्रत्रयं त्यजन् । तथा च । कवे इति स्थितम् । क । वे अ । को । ए । कवे ( ? ) इत्युत्तरं । कैथितापह्नुतजातिः ॥
वैषम्यं यत्र बन्धस्य विषमं तन्निरूप्यते । वृत्तनाम भवेत्प्रश्नवृत्तनामोत्तराद्धि यत् ॥ ५२॥ विनक्ष्यन्ति जना लोके के नेष्टगुणसञ्चयाः । तदुत्तरसमुद्भूतः शब्दः कः पशुवाचकः ॥५३॥
यहाँ प्रश्न है कि हे विस्रशून्याङ्ग े ! हे सड़ी गन्धवाले शरीरसे रहित ! कहो तो वायु, पक्षि, विष्णु, पृथ्वी, काम और कवि शब्दमें सम्बुद्धि – सम्बोधन के एक वचनका क्या रूप होता है । विकस्वरे - स्पष्ट होनेपर भी समझ में नहीं आ रहा है ।
[ २।५१
एक बार निस्रशून्या - इस पदको भगवान्की माताका सम्बोधन मान लिया जाय - विस्रगन्धेन आमगन्धेन शून्यमङ्गम् यस्यास्तत्सम्बुद्धी, समास किया जाय और दूसरी बार उसे विकस्वरेका विशेषण सप्तम्यन्त मान लिया जाय और पुरु पक्ष में अर्थ किया जाय - वित्रेण — विसकाररेफेण रहिते विकस्वरे अर्थात् विकस्वर शब्दमें से वि, स और र को छोड़ देने पर 'कवे!' शेष रहता है | श्लोकगत प्रश्नोंका उत्तर 'कवे' है । वायु शब्दका सम्बुद्धि क ( क ); पक्षि शब्दका वे ( वि ) और हरि - विष्णुका 'अ' अकारो वासुदेवे स्मात् — संधि करनेपर क + वे + अ - पूर्वरूप सन्धि होनेसे 'कवे' रूप शेष रहा । यही उत्तर है ॥ ५१ ॥
वृत्त एवं विषम वृत्त नामक चित्रका लक्षण -
जिसमें रचनाको विषमता प्रतीत हो उसे विषम और जिसमें प्रश्न वृत्तके नामसे ही उत्तरको प्रतीति हो जाय उसे वृत्त कहते हैं ॥ ५२ ॥
उदाहरण
इस लोक में अनुचित गुणोंका संचय करनेवाले कौन नष्ट होंगे ? अथवा उचित गुणों का संचय करनेवाले कौन नष्ट नहीं होंगे ? इनके उत्तर में उत्पन्न पशुवाचक शब्द कौन है ? ॥ ५३ ॥
१. वायुपक्षि ख । २. आमगन्धि क-ख । ३. कथितापह्नुतजातिः ख । ४. वृत्तानाम ख । ५. वृत्तनामन्तराद्धि ख । ६. विनश्यन्ति कख । ७. ते नष्टगुण....ख ।
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