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द्वितीयः परिच्छेदः
वनं पुष्पादिभी रम्यं कुर्यात् को मधुरेण दृक् । अपाङ्गवीक्षितैः कामिजनं तोषयतीह का ॥४७॥ मधुः मधुमासः । एणदृक् एणाक्षी । मध्योत्तरजातिः ॥ कि मिस्त्री द्वितीयायां रूपं को भूमिपालकः । कामिनी संगतो नित्यं के तु तुष्यन्ति कामिनः ॥४८॥ अन्तोत्तरजाति: ।
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सुस्थितं प्रश्नवाक्येऽपि पादान्तरवियोगिनि । कथितापहृतं यत्र नोत्तरं तद्विभाषितम् ॥ ४२॥ अभ्यते शमिना किं भोः केन मोमुह्यते जगत् । मुक्तिकान्तापरिष्वङ्ग धाम केनाप्यते वद ॥५०॥ शं सुखं । इना कामेन । मिलित्वा व्रतिना ।
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कौन पुष्पादिके द्वारा वनको सुन्दर बना सकता है ? इस संसारमें कटाक्षावलोकनसे कौन कामियोंको सन्तुष्ट करती है ॥ ४७ ॥
उत्तर - मधुः — मधुमासः - चैत्र । एणदृक् — मृगनयनी । मध्योत्तर जातिका उदाहरण है ।
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अन्तोत्तरका उदाहरण --
'किम्' शब्द के स्त्रीलिंग के द्वितीया विभक्ति में कौन रूप होता है ? राजा कौन है ? तथा सर्वदा स्त्रीसङ्गसे कौन सन्तुष्ट होते हैं ? ॥ ४८ ॥
उत्तर—काम् + इनः = कामिनः । अन्तोत्तर जातिका उदाहरण है ।
afraid चित्रका लक्षण -
अन्य पादसे रहित होनेपर भी जिस प्रश्नवाक्य में अच्छी तरहसे स्थित उत्तर वैकल्पिक न हो उसे कथितापह्न त कहते हैं ॥ ४९ ॥
उदाहरण
इन्द्रिय निग्रही होने से किसकी प्राप्ति होती है ? यह सारा संसार किससे मोहित हो रहा है ? मुक्तिरमाकी प्राप्ति हो जानेसे कौन स्थान मिलता है ? हे महानुभाव ! बतलाइये ॥ ५० ॥
उत्तर -- शम् - शान्ति या सुख । इना — कामदेव द्वारा । शमिना - प्रशान्त स्थान द्वारा या व्रतीद्वारा ।
यह कथितापह्नत जातिका दृष्टान्त है, जिस जातिमें उत्तर कथित रहता है, परन्तु स्पष्ट लक्षित नहीं होता, उसे कथितापह्नत जाति कहते हैं ।
३. लभ्यते ख । ४. भो ख ।
१. पुष्टादिभीख । २. पादान्तरसुयोगिनी क-ख । ५. परिष्वङ्गख ।
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