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अलंकारचिन्तामणिः
[ २०६३दयामूलो भवेद्धर्मो दयाप्राणानुकम्पनम् । दयायाः परिरक्षार्थ गुणाः शेषाः प्रकीर्तिताः ॥६३॥ इति शास्त्रोक्तत्वात् । शास्त्रजातिः । वर्ण एवोत्तरं वाक्यमेवोत्तरमुदोर्यते । वर्णोत्तरं भवेत्तत्तद्वाक्योत्तरमपि स्फुटम् ।।६४॥ लक्ष्मीः का किं जलं विष्णुसंबुद्धिः कथमुच्यताम् । कस्त्यागः कीदृशो देशाः प्रावटकाले वदाऽऽशु मे ॥६५॥ सावारयः । सा । वाः । अ । यः ॥ यस्त्यागे निलये वायो यमे धातरि पातरि इत्यभिधानात् ॥ आ समन्ताज्जलसहिताः ॥वर्णोत्तरजातिः ।। मेरौ लब्धं किमिन्द्राद्यैः स्वामिनाऽङ्गऽस्य का कृता। शक्रेणाव्ययमप्यर्थ किं कृता पुरुणा च का ॥६६॥ सुदोक्षाऽपि । सुत् सवनं । ईक्षा निरीक्षणं । अपि । सुदीक्षा। आपि प्राप्ता । वाक्योत्तरजातिः ।
दया मूलक धर्म होता है, प्राणियोंपर अनुकम्पा करना दया है । दयाकी रक्षादयाधर्मका पूर्णतया पालन करनेके लिए ही शेष-सत्यता, पवित्रता, क्षमा आदि गुण कहे गये हैं ॥६३३॥
यह बात शास्त्रों में कही गयी है, अतः यह शास्त्र जातिचित्रका उदाहरण है। वर्णोत्तर और वाक्योत्तर चित्रों के लक्षण
__ वर्णमें ही जिसका उत्तर प्रतीत हो जाये, उसे वर्णोत्तर और वाक्यमें ही जिसका स्पष्ट उत्तर प्रतीत हो, उसे वाक्योत्तर कहते हैं ॥६४६॥ उदाहरण
लक्ष्मी कौन है ? जल क्या है ? विष्णुका सम्बोधन क्या है ? त्याग कौन है ? वर्षाकालमें देश कैसे हो जाते हैं, यह मुझे शोघ्र बतलाइए ॥६५॥
उत्तर-सावारयः । सा-लक्ष्मी । वाः-पानी। विष्णु सम्बोधन 'अ' । यः-त्याग। त्याग, गृह, वायु, यम, ब्रह्म और रक्षक आदि अर्थोंमें 'यः' का प्रयोग होता है, यह कोश में लिखा है। सावारयः-अच्छी तरह जलसे परिपूरित वर्षा ऋतुमें देश होते हैं । यह वर्णोत्तर जातिका उदाहरण है। - इन्द्र इत्यादि देवताओंने मेरु पर्वतपर क्या किया ? स्वामीने इसके अंगमें क्या किया ? इन्द्रसे भी व्यय नहीं होनेवाला धन क्या है ? पुरुने क्या किया ? ॥६६॥
उत्तर-सुदीक्षापि । सुत्-सवनं-अभिषेक । इन्द्रादि देवोंने मेरुपर जिनेन्द्रका जन्माभिषेक किया अथवा सवनं-सोमरसको चुलाया। स्वामीने इन्द्रादिके अंगोंका
१. भवेद्धर्म:-ख । २. आ समन्तात् जलसहिताः-ख। ३. निरीक्षणम्-ख ।
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