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अलंकारचिन्तामणिः
[२।२२३ एतदप्येकालापकम् ॥
शब्दार्थलिङ्गवाग्भिश्च विभक्त्या यत्समासतः व्यस्तं विभिन्नमाख्यातं तत्प्रभिन्नं मनीषिभिः ।।२२३॥ आमन्त्र्यतां महावैरिवन्दं शब्दोऽपराधवाक । कोऽमराणां प्रजायेत तीर्थनाथसमुद्भवे ॥२३॥
महारागः । महार अरीणां वृन्दमारम् । आगः शब्दार्थलिङ्गभिन्नम् ।। शब्दार्थलिङ्गभिन्नम् ॥
संबुद्धि विकृष्टार्थे कुरु ब्रह्मोच्यते च कः ।
प्रजानां घातकः को वा भूपतिः परिभाष्यते ॥२४॥ दूराजः । शब्दार्थभिन्नम्
कीदृशं नन्दनं मेरोस्सप्तम्या मेघवाचकम् । किं पदं सुस्पृहां कस्मै कुर्वते वद कामुकाः ॥२५३।।
उत्तर-"करेणु" अर्थात् करे-हस्ते णु-रेखा-हाथमें रेखा प्रशंसनीय होती है। इसका दूसरा अर्थ करेणुका-युवती हस्तिनी । प्रमिन्नक चित्रालंकार
शब्द, अर्थ चिह्न, वचन और विभक्तिके द्वारा, जो संक्षेपसे पृथक्-पृथक् अनेक प्रकारकी बातें कही गयो हों, उन्हें विद्वानोंने प्रभिन्नक चित्रालंकार कहा है ॥ २२३ ।। शब्दार्थलिंगभिन्न चित्रालंकारका उदाहरण
प्रबल शत्रु समूहको कौन आमन्त्रित करता है ? अपराधवालो वाणीका कौन शब्द है ? तीर्थंकरोंके उत्पन्न होनेपर देवताओंमें कौन सा भाव उत्पन्न होता है ? ॥ २३३ ॥
उत्तर-महारागः--अत्यधिक रागवाला। अरीणां-शत्रुओंके, वृन्दम्समूहको आरम्-शस्त्रम्-~-शस्त्र और क्षत। आगः । यहाँ शब्द, अर्थ और लिंग भिन्न-भिन्न हैं। शब्दार्थ मिन्न चित्रालंकारका उदाहरण
ब्रह्माका वाचक ऐसा कौन सा शब्द है, जो दूरार्थ सम्बोधनमें प्रयुक्त होता है ? प्रजाओंका घातक कोन राजा कहा जाता है ? ॥ २४३ ॥
उत्तर-दूराज । सम्बोधनं दूरार्थे हे दूर। अजः ब्रह्मा। दुष्टश्चासौ राजा च दूराजः । दुष्ट राजा। यहां शब्द और अर्थ भिन्न-भिन्न है । शब्दार्थ लिंगविमक्तभिन्न चित्रालंकारका उदाहरण
सुमेरुका नन्दन वन कैसा है ? सप्तमीका मेघवाचक पद कौन है ? कामुक व्यक्ति किसकी इच्छा करते हैं ? ॥ २५ ॥
१. संबोधनं दूरार्थं हे दूर । अजः ब्रह्मा। दुष्टश्चासौ राजा च दूराजः-विश्लेषणम् ।
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