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द्वितीयः परिच्छेदः महासुरतरुचये'। शब्दार्थलिङ्गविभक्तिभिन्नम् ।
शोभमानं नभः कीदृक् कस्तापयति देहिनम् ।
के जिनेशसमुत्पत्तिसमये कृतसंभ्रमाः ॥२६॥ सुरविभवः । शब्दार्थवचनभिन्नम् ।
एकेनैवार्थभेदेन रचयन्ति प्रभिन्नकम् । केचिन्मृदुधियस्ते च नदृतं सूरिभिर्यथा ॥२७॥ कः कम्पयति चेतांसि सर्वेषां वैरिणां भृशम् ।
सुरासुरनरादीनां कस्तोषयति मानसम् ॥२८॥ वीरोदयः॥
उत्तर-महासुखरुचये-बड़े-बड़े कल्प वृक्ष समूहवाला नन्दन वन है । कल्पवृक्ष पक्षमें चये सप्तम्यन्त है। कामुक पक्षमें अत्यधिक निधुवन–मैथुनकी रुचि है।-"महच्च तत् सुरतंच निधुवनं तस्य रुचये प्रीतये"-व्युत्पत्ति सम्भव है। शब्दार्थवचन चित्रालंकारका उदाहरण
कैसे आकाशकी शोभा होती है ? शरीर धारियोंको कौन कष्ट देता है ? जिनेश्वरके जन्म समयमें विशेष उत्साहवाले कौन हुए हैं ? ॥ २६ ॥
उत्तर-सुरविभवः-'नभः पक्षे शोभनश्चासौ रविश्च सुरविस्तेन शोभनम् ।' सूर्योदय विशिष्ट आकाशकी शोभा होती है। 'प्राणिपक्षे-संसारस्तापयति' संसार प्राणियोंको कष्ट देता है। 'जिनोत्पत्तिपक्षे सुराणां विभवो नाथाः देवेन्द्राः" इन्द्रोंको जिनोत्पत्तिके समय विशेष उत्साह होता है । यह शब्दार्थ वचन भिन्नका उदाहरण है। प्रभिन्नक चित्रालंकारके सम्बन्धमें अन्य विचारणीय
__ कोई सुकोमल बुद्धिवाले कवि एक ही प्रकारके अर्थभेदसे प्रभिन्नक चित्रालंकारको रचना करते हैं, पर आचार्योंने इस पक्षको मान्यता नहीं दी है ॥ २७ ॥
समस्त शत्रुओंके अन्तःकरणको कौन अत्यधिक कम्पित करता है ? देब, दानव और मानवोंके अन्तःकरणको कौन सन्तुष्ट करता है ? ॥ २८ ॥
उत्तर-वीरोदयः-शत्रपक्षे-'वीराणामुदयः शूरोत्पत्तिः' शूरपुरुषोंकी उत्पत्ति शत्रुओंके अन्तःकरणको कम्पित करती है। देव-दानवपक्षे–'वीरस्योदयः वर्धमानस्वामिन उत्पत्तिः'-महावीर स्वामीका जन्म देव-दानव-मानवको आनन्दित करनेवाला
१. नन्दनवनपक्षे महान्तः सुरतरवो यस्य तत् । कल्पवृक्षपक्षे सप्तम्यन्तं चये इति । कामकानां पक्षे महच्च तत् सुरतं च निधुवनं तस्य रुचये प्रीतये ।
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