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द्वितीयः परिच्छेदः राजराजविराजितम् । रा वित्तम् । जरा । जविभिरश्वैः शोभितम् । राजराजं चक्रिणम् । विराति विशेषेण अनुगृहातीतिराजराजविरा दिव्यभाषा । अजितम् । द्विय॑स्तसमस्तजातिः' । एकश्रुतिप्रकारेण भिन्नार्थकथकं वचः। द्विः समस्तप्रभेदेन तदेकालापकं मतम् ॥१९॥ किमाहुः सरलोत्तुङ्गः सच्छायतरुसंकुलम् ।
कलभाषिणि किं कान्तं तवाङ्गे सालकाननम् ॥२०३।। सालवनम् । अलकसहितमुखम् ॥
क्व कोदक शस्यते रेखा तवाणुभ्रः सुविभ्रमे ।
करिणी च वदान्येन पर्यायेण करेणुका ॥२१॥ शुभप्रद क्या है ? सभीका हितकारक कौन है ? कौन कुल प्रशंसनीय है ? तीर्थङ्करोंकी सभा कैसी है ? ॥ १८ ॥
उत्तर-राजराजविराजितम् । रा-धन. जरा-वृद्धावस्था, जविभिः-वेग-- शाली अश्वैः-घोड़ोंसे शोभित । राजराजम्-विष्णु अथवा सम्राट् ।।
विराति-विशेषेण-अनुगृह्णाति इति राजराजविरा-दिव्यभाषा। अजितम्अजेय । अर्थात् उपर्युक्त प्रश्नोंका उत्तर "राजराजविराजितम्" पद है, किन्तु इसका अर्थ प्रसंगानुकूल ग्रहण करना पड़ेगा। एकालापक चित्रालंकारका लक्षण
एक सुननेके क्रिया-भेदसे तथा दो बार समासके रूपमें परिणत भेदसे भिन्नभिन्न अर्थको कहनेवाले वचनको एकालापक चित्रालंकार कहा गया है ।। १९३ ॥ एकालापक चित्रालंकारका उदाहरण
____ सोधे और ऊंचे अधिक छायावाले वृक्षोंसे व्याप्त क्या है ? हे मधुर बोलनेवाली तेरे अंगमें मनोरम-प्रिय क्या है ? ॥ २० ॥
उत्तर-सालकाननम् अर्थात् साल-वृक्षका जंगल । (२) सुन्दर केशोंसे युक्त मुख ।-यह एकालापकका उदाहरण है। अन्य उदाहरण
हे लघु भौंहवाली तथा सुन्दर विलासवाली, तुम्हारी रेखा कहाँ और कैसी प्रशंसनीय है ? यह पद ऐसा होना चाहिए, जिसके अन्य पर्यायवाचक शब्दका अर्थ करिणो हो ? ॥ २१३ ॥
१. अग्रे-लक्ष्मीहस्तोऽम्बुजानां को निलयः कोऽडिघ्ररिन्दिरा । का मयूखोऽपि को ब्रूहि चित्रकाव्यविशारदे ॥ क-ख । पद्माकरः पद्मायाः हस्तः पद्मानामाकरो निलयः । पद्-अज्रिः । मा-लक्ष्मीः । करो मयूखः द्विस्समस्तव्यस्तजातिः ।
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