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द्वितीयः परिच्छेवः कल्याणेषु सुरैः कोऽर्थ्यः कमनीयेषु देवि भोः । स्मतॄणामपि कर्तृणां मुक्तिसौख्यप्रदो महान् ॥११३॥ तीर्थकरः । समस्तजातिः। समासपदभङ्गने द्वि:पृष्टं व्यस्तमेव वा । समस्तं यत्तदाख्यातं द्विव्यस्तं द्विः समस्तकम् ॥१२॥ नारायणसुसंबुद्धिः का चन्द्रमसि को वसेत् । मुक्तिकान्तापरिष्वक्तः किं पदं कीदृशो धरेत् ॥१३।।
अकलङ्कः । आकलङ्कः । अकलं अशरोरपदम् । कः परमात्मा। द्विय॑स्त जाति:
जिनमानम्रनाकोको नायकाजितसत्क्रमम् ।
कमाहुः करिणं चोद्धलक्षणं कीदृशं विदुः ॥१४॥ समस्त चित्रालंकारका उदाहरण
हे देवि ! मनोहर गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान और निर्वाण कल्याणकोंमें देवोंके द्वारा कीन पूज्य है ? स्मरण करने वाले और कार्य करनेवालोंको महान् मुक्तिसुख प्रदान करने वाला कौन है ? ॥ ११३ ॥
उत्तर-तीर्थङ्कर । द्विय॑स्त और द्विःसमस्त चित्रालंकारके लक्षण
समस्त पदोंका विभाग कर दो बार पूछा जाय तो उसे द्विय॑स्त चित्रालंकार और समस्त पदों में ही दो बार पूछा जाये तो उसे द्विःसमस्त चित्रालंकार कहते हैं ॥१२३।। द्विय॑स्त जाति चित्रालंकारका उदाहरण
नारायणमें सुसम्बुद्धि क्या है ? चन्द्रमामें कौन रहता है ? मुक्ति कान्तासे समालिगित किस प्रकारके पदको धारण करता है ? ॥ १३३ ॥
उत्तर-अकलङ्कः । आकलङ्कः । अकलं अशरीरपदम् । कः परमात्मा। अर्थात् कलंक रहित । आकलङ्कः-बहुत बड़ा कलंक-चिह्न। अकलम् -अशरीम्, पदम् - अभाव शरीराभाव-निकलंक (सिद्ध परमात्मा निकलंक -- शरीर रहित हैं।) द्विःसमस्तजाति चित्रालंकारका उदाहरण
इन्द्रादि देवों द्वारा नम्रीभूत हो नमस्कार किये गये और पुण्यका अर्जन करनेवाले जिनेन्द्रको क्या कहा गया है ? उद्धत हाथीको कैसा कहा गया है ॥ १४ ॥
१. पुरैः-ख । २. विभागेन व्यवच्छेदेन च-ख । ३. भवेत्-ख । ४. प्रनाकोको-ख । ५. नायकाचितसत्क्रमम्-ख ।
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