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अलंकारचिन्तामणिः विषमं वृतनामापि नामाख्यातं च तार्यकम् । सौत्रं शाब्दिकशास्त्रार्थ वर्णवाक्योत्तरे तथा ॥६॥ श्लोकवाक्योत्तरं खण्डं पादोत्तरसुचक्रके। पद्म काकपदं चापि गोमूत्रं सर्वतः शुभम् ॥७॥ गतप्रत्यागतं चापि वद्ध मानाक्षरं तथा । होयमानाक्षरं चापि शृङ्खलं नागपाशकम् ॥८॥ चित्रं संशुद्धमन्यत्तु सप्रहेलिकमीरितम् ॥८३।। पृथक् पृथक् पदैः पृष्ठं यत्तद्व्यस्तं निगद्यते ।।९।। समस्तं मेलनेनात्र पदानां पृष्टमुच्यते ॥९॥ कः पूजावाचकः शब्दः कर्मभूतं विधि वर्दै ॥१०॥ मेदिनीवाचकः शब्दः कः पद्मवदनेऽम्बिके ॥१०॥ स्वयम्भूः। व्यस्तजातिः ।।
मध्योत्तर ( १९ ) अन्तोत्तर (२० ) अपह्नत ( २१ ) विषम ( २२ ) वृत्त ( २३ ) नामाख्यातम् (२४) ताकिक ( २५ ) सौत्र ( २६ ) शाब्दिक (२७ ) शास्त्रार्थ ( २८ ) वर्गोत्तर ( २९ ) वाक्योत्तर (३०) श्लोकोत्तर ( ३१ ) खण्ड ( ३२ ) पदोत्तर ( ३३ ) सुचक्रक ( ३४ ) पद्म ( ३५ ) काकपद ( ३६ ) गोमूत्र ( ३७ ) सर्वतोभद्र (३८) गत-प्रत्यागत (३९) वर्द्धमान ( ४०) हीयमानाक्षर (४१) श्रृंखल और (४२) नागपाशक ये शुद्ध चित्रालंकार हैं। इनके अतिरिक्त अर्थप्रहेलिका तथा अर्थप्रहेलिका भेदसे और भी अनेक भेद सम्भव हैं ॥ ३-८३ ॥ व्यस्त और समस्त चित्रालंकारके लक्षण
पृथक्-पृथक् पदोंसे जो प्रश्न किया जाय उसे व्यस्त, एकमें मिले हुए पदोंसे जो प्रश्न किया जाये उसे समस्त चित्रालंकार कहते हैं ।। ९३ ॥
व्यस्त चित्रालंकारका उदाहरण
पूजावाचक शब्द कौन है ? कर्म होनेवाले विधिका पर्याय कौन है ? पृथिवीवाचक शब्द कौन है ? पद्मवदन-कमलमुख और अम्बिक अर्थवाले कौन शब्द हैं ? ॥१०॥
उत्तर-स्वयम्भू
१. शास्त्रोत्थे-ख । २. सर्वतोभद्रम् ---इति टिप्पण्याम्-ख । ३. पूजार्थ वदतीति द्वितीयाविभक्त्यन्तम् । ४. विधिपर्यायम्-विश्लेषणं-ख ।
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