SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -२१३ ] द्वितीयः परिच्छेदः राजराजविराजितम् । रा वित्तम् । जरा । जविभिरश्वैः शोभितम् । राजराजं चक्रिणम् । विराति विशेषेण अनुगृहातीतिराजराजविरा दिव्यभाषा । अजितम् । द्विय॑स्तसमस्तजातिः' । एकश्रुतिप्रकारेण भिन्नार्थकथकं वचः। द्विः समस्तप्रभेदेन तदेकालापकं मतम् ॥१९॥ किमाहुः सरलोत्तुङ्गः सच्छायतरुसंकुलम् । कलभाषिणि किं कान्तं तवाङ्गे सालकाननम् ॥२०३।। सालवनम् । अलकसहितमुखम् ॥ क्व कोदक शस्यते रेखा तवाणुभ्रः सुविभ्रमे । करिणी च वदान्येन पर्यायेण करेणुका ॥२१॥ शुभप्रद क्या है ? सभीका हितकारक कौन है ? कौन कुल प्रशंसनीय है ? तीर्थङ्करोंकी सभा कैसी है ? ॥ १८ ॥ उत्तर-राजराजविराजितम् । रा-धन. जरा-वृद्धावस्था, जविभिः-वेग-- शाली अश्वैः-घोड़ोंसे शोभित । राजराजम्-विष्णु अथवा सम्राट् ।। विराति-विशेषेण-अनुगृह्णाति इति राजराजविरा-दिव्यभाषा। अजितम्अजेय । अर्थात् उपर्युक्त प्रश्नोंका उत्तर "राजराजविराजितम्" पद है, किन्तु इसका अर्थ प्रसंगानुकूल ग्रहण करना पड़ेगा। एकालापक चित्रालंकारका लक्षण एक सुननेके क्रिया-भेदसे तथा दो बार समासके रूपमें परिणत भेदसे भिन्नभिन्न अर्थको कहनेवाले वचनको एकालापक चित्रालंकार कहा गया है ।। १९३ ॥ एकालापक चित्रालंकारका उदाहरण ____ सोधे और ऊंचे अधिक छायावाले वृक्षोंसे व्याप्त क्या है ? हे मधुर बोलनेवाली तेरे अंगमें मनोरम-प्रिय क्या है ? ॥ २० ॥ उत्तर-सालकाननम् अर्थात् साल-वृक्षका जंगल । (२) सुन्दर केशोंसे युक्त मुख ।-यह एकालापकका उदाहरण है। अन्य उदाहरण हे लघु भौंहवाली तथा सुन्दर विलासवाली, तुम्हारी रेखा कहाँ और कैसी प्रशंसनीय है ? यह पद ऐसा होना चाहिए, जिसके अन्य पर्यायवाचक शब्दका अर्थ करिणो हो ? ॥ २१३ ॥ १. अग्रे-लक्ष्मीहस्तोऽम्बुजानां को निलयः कोऽडिघ्ररिन्दिरा । का मयूखोऽपि को ब्रूहि चित्रकाव्यविशारदे ॥ क-ख । पद्माकरः पद्मायाः हस्तः पद्मानामाकरो निलयः । पद्-अज्रिः । मा-लक्ष्मीः । करो मयूखः द्विस्समस्तव्यस्तजातिः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy