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अलंकारचिन्तामणिः
[२३१५३ सुरवरदम् । सुरेभ्यो वरमभीष्टं ददाति । शोभना रवा रदा यस्य । द्विःसमस्तजातिः॥
उभयार्थप्रदं पृष्ठं पदं पदविभागतः। समुदायेन च प्रोक्तं तद्व्यस्तकसमस्तकम् ॥१५॥ आतपोत्तप्तपान्थानां किं तष्णां विच्छिनत्ति भोः। त्यजन्ति मुनयो धीराः किं किं पापकरं मतम् ।।१६।। कन्दर्परञ्जनम्। के गर्वरागद्वयम् । व्यस्तसमस्तजातिः ॥ व्यासद्वयसमासाभ्यां द्विय॑स्तैकसमस्तकम् । स्याद् द्विसमस्तकव्यस्तं द्विःसमासेतरैकतः ॥१७॥ निस्स्वतोषाय को मूर्द्धभ्रान्तेः का किं शुभ्रं' रणे । सार्वी का किं कुलं स्तुत्यं किं सदस्तीर्थकारिणाम् ॥१८॥
उत्तर-सुरवरदम्-देवताओंको अभिलषित पदार्थ देनेवाला। सुन्दर शब्द और दाँतवाला अर्थात् उद्धलक्षण गज भी सुरवरदम्-'शोभना रवा रदा यस्य' कहलाता है। व्यस्तक समस्तक चित्रालकार का लक्षण
पदके विभागसे पूछा गया पद यदि दो अर्थोंका प्रतिपादक हो अथवा समुदायसे भी पूछा गया पद दो अर्थों का प्रतिपादक हो तो उसे व्यस्तक-समस्तक चित्रलंकार कहते
व्यस्तक-समस्तक चित्रालंकारका उदाहरण
___आतपसे पीडित पथिकोंको तृष्णाको कौन दूर करता है ? धीर मुनीश्वर किसका त्याग करते हैं ? पापकारक क्या माना गया है ? ॥ १६ ॥
उत्तर--कन्दर्परञ्जनम्-कामदेवको प्रसन्न करनेवाला। कं गर्वरागद्वयम्गर्व-स्मर-राग-द्वेष । कम्-जलम्-जल ( पथिकोंकी तृषाको जल शान्त करता है ) द्विय॑स्तक-समस्तक और द्विःसमस्तक-व्यस्तक चित्रालंकारके लक्षण,
दो व्यस्तपद और एक समस्तपदसे जिसे कहा जाये उसे द्विय॑स्तक-समस्तक तथा दो समस्त और एक व्यस्तपदसे जिसे कहा जाय, उसे द्विःसमस्तक-व्यस्तक चित्रलंकार कहते हैं ॥ १७ ॥ द्विव्यस्तक-समस्तक और द्विःसमस्तक-व्यस्तक चित्रालंकारके उदाहरण
निर्धनोंके सन्तोषके लिए क्या है ? मस्तकमें भ्रान्तिका कारण क्या है ? युद्ध में
१. प्रदं दृष्ट पदम्-क। २. गर्वरागद्वयम्-स्मरराग:-इति क-ख । ३. व्यस्तपदद्वयम्, समस्तपदमेकम-ख। ४. भ्रान्तये-क-ख । ५. का शुभं रणम्-क-ख । ६. सर्वेभ्यो हिताः-इति विश्लेषणम् ।
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