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प्रथमः परिच्छेदः प्रयाणेऽश्वखुरोद्भूतरजोवाद्यरवध्वजाः । भूकम्पो रथहस्त्यादिसंघट्टः पृतनागतिः।।४७।। मृगयायां मृगत्राससञ्चारादि-कुदृष्टिभिः । कृतं संसारभीरुत्वजननाय वदेत् क्वचित् ।।४।। अश्वे वेगित्वसल्लभैगतिजात्युच्चतादयः । गजेऽरिव्यूहभेदित्वकुम्भमुक्कामदालयः ।।४९॥ मधौ दोलानिलालिश्री-झङ्कार-कलिकोद्गमाः। सहकारविटप्यादि-सुमनोमञ्जरीलताः ॥५०॥ निदाघे मल्लिकातापसरःपथिकशोषिताः ।
मरीचिकामगभ्रान्तिः प्रपा तत्रत्ययोषितः ॥५१॥ विजययात्राके वर्णनीय विषय
शत्रु विजयके लिए की जानेवाली यात्राके लिए घोड़ोंके खुरोंसे उठी हुई धूलि, रणभेरी, कोलाहल, ध्वज-कम्पन या ध्वजाओंका लहराना, पृथिवी-कम्पन, रथ, हाथी, उष्ट्र आदिके समूह-संघर्ष एवं सेनाको गमनरीतिका वर्णन करना अपेक्षित है ॥ ४७ ॥ मृगयाके वर्णनीय विषय
हरिणोंका भय, पलायन तथा बुरी दृष्टिसे चितवन आदिके द्वारा जगत्में भय उत्पन्न करनेके लिए वर्णन किया जा रहा है। अतः मृगयाके वर्णन-प्रसंगमें उक्त तथ्योंका वर्णन करना अपेक्षित है ॥४८॥ घोड़ेके वर्णनीय विषय
घोड़ाका वर्णन करते समय उसके तीव्र वेग, देवमणि आदि शुभ लक्षण; रेचक आदि पांच प्रकारको गतियाँ; बाल्हीक, कम्बोज आदि जातियां एवं उच्चता आदिका वर्णन अपेक्षित है । गजके वर्णनीय विषय
___ गजका वर्णन करते समय गज-द्वारा शत्रुनिर्मित व्यूहका तोड़ना, गण्डस्थल, गजमुक्ता, मद एवं मदसे आकृष्ट भ्रमरोंका वर्णन करना चाहिए ॥ ४९ ॥ वसन्त ऋतुके वर्णनीय विषय -
वसन्त ऋतुमें दोला, मलयानिल, भ्रमर-वैभवकी झंकार, कुड्मलको उत्पत्ति, आम्र, मधुक आदि वृक्ष, पुष्प, मञ्जरी एवं लता आदिका वर्णन करना चाहिए ॥ ५० ॥ ग्रीष्म ऋतुके वर्णनीय विषय
ग्रीष्म ऋतुका वर्णन करते समय मल्लिका, उष्मा-गर्मी, सरोवर, पथिक, १. सल्लक्ष्मगतिजा-क तथा ख ।
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