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अलंकार चिन्तामणिः
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वर्णभेदं विजानीयात्कविः काव्यमुखे पुनः । सद्वर्णं सद्गणं कुर्यात्संपत्संतानसिद्धये ॥ ८४ ॥ वर्ण्यवर्ण कयोर्लक्ष्मीः शीघ्रमेवोपजायते । अन्यथैतद्वयस्यापि दुःखसंततिरञ्जसा || ८५|| झाज्जाच्चाच्छादृठाभ्यां ढणथपबभमै राल्लवात्पाद्द लाभ्याम्,
४
संयुक्तेऽक्षं विना स्यादशुभमितरतो वर्णंतोभद्रमिद्धम् ॥ ८५३ ॥ मोभूनगोयंभोवाः शशधरयुगलं मङ्गलं तोऽशुभः खंजोरस्सो भासुरग्निः पवन इदमभद्रं त्रयं चादिकानाम् ॥८६॥
कुलामाला कुलाभिलाम्' पाठ रहेगा । इलापालनशीला – पृथ्वीपाल; इरा वाणी कलामाला कुलामिलां भूमि सुलाति - ददाति' व्याख्यान होगा ।
जिनेन्द्र भगवान्की स्तुति दिव्यवाणी प्रदान करती है । जो व्यक्ति भक्ति-विभोर होकर जिन भगवान्को स्तुति करता है— गुणस्तवन करता है, उसे दिव्यवचन शक्ति प्राप्त होती है ॥ ८३ ॥
काव्य रचनाके नियम
afast काव्य-रचना के प्रारम्भमें हो वर्णों के स्वरूप भेदको सम्यक् प्रकार जान लेना चाहिए । सम्पत्ति और सन्तानके इच्छुक कवि काव्य के प्रारम्भमें शुभ वर्ण और शुभ गणों का प्रयोग करें ॥ ८४ ॥
काव्यके प्रारम्भमें उक्त वर्ण और उत्तम गणका प्रयोग करनेसे पाठक और काव्यनिर्माता कविको शीघ्र ही सम्पत्तिकी प्राप्ति होती है तथा जो कवि सद्वर्ण और शुभगणका काव्यके प्रारम्भमें प्रयोग नहीं करता, उसकी तथा काव्यपाठकी सम्पत्ति और सन्ततिकी क्षति होती है ।। ८५ ।।
वर्णोंका शुभाशुभत्व -
झ, ज, च, छ, ट, ठ, ढ, ण, थ, प, फ, ब, भ, म, र, ल, व और द में ये वर्ण अ और क्ष के विना अन्य वर्णोंके साथ संयुक्त रहनेपर काव्यादिमें इनका प्रयोग अशुभ माना जाता है तथा उक्त वर्णोंके अतिरिक्त अन्य वर्णों का संयोग काव्यारम्भ में
शुभकारक होता है ॥ ८५ ॥
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गणके देवता और उनका फल
मग देवता भूमि, नगणके स्वर्ग, भगणके जल और मगणके देवता चन्द्रमा हैं । इन चारों गणों को माङ्गलिक माना गया है । इनका काव्यारम्भ में प्रयोग शुभकारक है ।
१. सद्गुणं - ख वर्तते । ४. संयुक्तैः क्षं - क ख प्रती ।
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२. ऋलृ ५. भानुरग्निः-क |
चाज्झा - ख ।
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३. क्षाद्धलाभ्याम् - क ।
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