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प्रथमः परिच्छेदः मानस्तम्भो नटति नितरां, सूर्यबिम्बस्य मूनि
कान्त्या दीप्तया जिनवरमहाविम्बवृत्त्याचितेऽस्य' मूलं गत्वा महयति रवौ बिम्बवृन्दं जिनानाम्। मानस्तम्भः पुरुजिनपतेः संसदोति स्तूतोऽभू
न्मानस्तम्भो नटति नितरां सूर्यबिम्बस्य मूनि ॥१०१।। नभसि नलिनपत्रे दन्तिनः संचरन्ति
पुरुजिनवरवाणी सर्व भाषास्वभावा प्रगतनिखिलदोषानन्तसौख्यप्रदा सा। सकलनयगभीरा स्यान्मषा स्याद्यदीति । नभसि नलिनपत्रे दन्तिनः संचरन्ति ॥१०२॥
___ इस प्रकारको समस्या-पूर्ति करनेसे कविको मौलिकतामें न्यूनता नहीं आती है और न कवि चोर हो कहलाता है। नवीन अर्थको योजना कर समस्याको पूर्ति करना कवि-कर्ममें समादरणीय माना गया है । समस्यापूर्तिका अन्य उदाहरण
अन्य समस्या-“मानस्तम्भो नटति नितरां सूर्यबिम्बस्य मनि"-'सूर्य बिम्बके ऊपर मानस्तम्भ नृत्य कर रहा है' की पूर्ति की गयी है।
मानस्तम्भके मूलमें जिन प्रतिमाएं होती हैं। सूर्यनामक ज्योतिष्क देव जब उन प्रतिमाओंको पूजा करनेके लिए मानस्तम्भके मूल में गया, तब उन प्रतिमाओंकी कान्ति और दीप्ति उस सूर्य देवपर पड़ी, जिससे वह आकाशस्थित सूर्यके समान ही चमकने लगा। उस समय उस मानस्तम्भको इस तरह स्तुति की गयो कि सूर्य बिम्बके मस्तकपर मानस्तम्भ अच्छी तरह नृत्य करता हुआ विद्यमान है ॥ १०१ ॥
इस प्रसंग की गयी समस्यापूर्ति में कल्पनाजन्य अपूर्व चमत्कार है। कविने सूर्य बिम्बके मस्तकपर मानस्तम्भके नृत्य करनेका सहेतुक निरूपण किया है । वस्तुतः इस पद्य में समस्या-पूर्ति रहने पर भी मौलिकता प्राप्त होती है।
समस्यापूर्तिका अन्य उदाहरण
अन्य समस्या-"नभसि नलिनपत्रे दन्तिनः संचरन्ति"-'आकाशमें कमलपत्रपर हाथी घूम रहे हैं-की पूर्ति निम्न प्रकार की है।
सर्वभाषामयी, सभी प्रकारके दोषोंसे शून्य, असीम सुख प्रदान करनेवाली, समस्त नयोंसे युक्त गम्भीर आदि तीर्थकरकी स्याद्वाद-वाणी यदि असत्य हो जाये तो आकाशमें कमलपत्रपर हाथी घूमने लगें ॥१०२ ॥
१. चितेऽस्य-ख । २. स्यान्तपास्याद्य-ख ।
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