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प्रथमः परिच्छेदः सतोऽप्यनिबन्धो यथाचन्दने फलपुष्पे च सुरभी मालतीसुमम् । शुक्ल पक्षे तमोऽशुक्ले ज्योत्स्नाफलमशोकके ॥७५।। रक्तिमा कामिदन्तेषु हरितत्वं च कुन्दके । दिवानिशोत्पलाब्जानां विकासित्वं न वर्ण्यताम् ।।७६।। नियमेन निबन्धो यथासामान्येन तु धावल्यं पत्रपुष्पाम्बुवाससाम् । चन्दनं मलयेष्वेव मधावेव पिकध्वनिम् ।।७७।। अम्बुदाम्बुधिकाकाहिकेशभृङ्गेषु कृष्णताम् । बिम्बबन्धूकनीरेषु सूर्यबिम्बे च रक्तताम् ।।७८।।
सद्वस्तुओंकी अनुपलब्धि सम्बन्धी कविसमयका उदाहरण
चन्दन वृक्षमें फल और पुष्पके होनेपर भी उसका वर्णन नहीं करना, वसन्त ऋतुमें मालती कुसुमके होनेपर भी उसका वर्णन नहीं करना, शुक्ल पक्षमें अन्धकारके रहनेपर भी उसका वर्णन नहीं करना, कृष्णपक्षमें चन्द्र-ज्योत्स्नाके रहनेपर भी उसका वर्णन न करना एवं अशोकवृक्षमें फलके होनेपर भी उसका वर्णन नहीं करना सद्वस्तुके अनुल्लेख सम्बन्धी कविसमय है । ७५ ॥
___ कामी नर-नारियोंके दांतोंमें लाली, कुन्द-कुसुममें हरीतिमा और रात्रिमें विकसित होनेवाले कुमुद इत्यादिके दिनमें विकसित होनेपर भी वर्णन न करना सद्वस्तुका अनुल्लेख होनेसे कविसमय है ॥ ७६ ॥
अनेक स्थानों में प्रचलित व्यवहारोंका किसी विशेष स्थानमें वर्णन करना और अन्यत्र रहनेपर भी वर्णन नहीं करना । यथानियमेन उल्लेखरूप कविसमयका उदाहरण
अन्य वस्तुओंके श्वेत होनेपर भी सामान्यतया पत्र, पुष्प, जल और वस्त्रको शुक्लता, अन्य पर्वतोंपर चन्दनकी उपलब्धि होनेपर भी मलयाचलपर चन्दनका वर्णन, अन्य ऋतुओंमें कोयलकी ध्वनि होने पर भी वसन्त ऋतुमें ही उसका वर्णन करना नियमेन उल्लेखरूप कविसमय है ॥ ७७ ॥
__ मेघ, समुद्र, काक, सर्प, केश, भ्रमरमें ही कृष्णता एवं बिम्बाफल, बन्धूकपुष्प, मदिरा और सूर्यके बिम्बमें रक्तताका वर्णन सद्वस्तुओंका नियमेन उल्लेखरूप कविसमय है ।। ७८ ॥
१. नीरेज-ख ।
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