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प्रथमः परिच्छेदः अम्भः केली जलक्षोभो' हंसचक्रापसर्पणम् । भूषाच्यतिपयोबिन्दुलग्नास्य जलजश्रमाः ॥६६॥ वर्ण्यदिङ्मात्रता प्रोक्ता यथालङ्कारतन्त्रकम् । वर्णनाकुशलैश्चिन्त्यमनेकविधमस्ति तत् ॥६७।। चन्द्रार्कोदयमन्त्र दूतसलिल क्रोडाकुमारोदयोद्यानाम्भोधिपुरर्तुशैलसुरताजीनां प्रयाणस्य च । वर्ण्यत्वं मधुपाननायकपदव्योविप्रलम्भस्य च काव्येऽष्टादशसङ्ख्यक युतविवाहस्यापि केचिद्विदुः ॥६८॥ कवीनां समयस्त्रेधा निबन्धोऽप्यसतस्सतः। अनिबन्धस्सजात्यादेनियमेन समासतः॥६९॥
जलक्रीडाके वय विषय
जल-क्रीड़ाके अवसर पर जलसंक्षोभ-जलमन्थन, हंस और चक्रवाकका वहाँसे हटना, धारण किये हुए हारादि अलंकारोंका गिर पड़ना, जलकण, जलसीकरयुक्त मुख, एवं श्रम इत्यादिका वर्णन करना चाहिए ॥ ६६ ॥ वर्ण्य विषयोंका उपसंहार
यहाँ अलंकारशास्त्रके अनुसार वर्णनीय विषय अत्यन्त संक्षेप रूप में उपस्थित किये गये हैं। इनके वर्णन करनेके अनेक भेद हैं। वर्णन करने में निपुण कविवरोंको स्वयं विचार कर इनका चित्रण करना चाहिए ॥ ६७ ॥ अन्य आचार्यों के मतानुसार काव्यके वर्ण्यविषय
कुछ आचार्य, (१) चन्द्रोदय, (२) सूर्योदय, ( ३ ) मन्त्र, (४) दूत, (५) जलक्रीडा, (६) राजकुमारका अभ्युदय, (७) उद्यान, (८) समुद्र, (९) नगर, (१०) वसन्तादि ऋतुएँ, (११) पर्वत, (१२) सुरत, ( १३) समर-युद्ध, (१४ ) यात्रा, (१५) मदिरापान, (१६) नायक-नायिकाकी पदवी, (१७) वियोग, ( १८) और विवाह; इन अठारह विषयोंको काव्यका वर्ण्यविषय मानते हैं ॥ ६८ ॥ कवि समयके भेद
___ कविसमय तीन प्रकारका है-(१) जो वस्तु संसारमें नहीं है, उसका उल्लेख, (२) जो वस्तु संसारमें है, उसका अनुल्लेख (३) और समान जातिवाले पदार्थोंका संक्षेपमें नियमानुसार वर्णन करना कविसमयके अन्तर्गत है ॥ ६९ ।।
१. जलक्षोभ.-ख ।
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