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अलंकार चिन्तामणिः
असतोऽपि निबन्धो यथागिरौ रत्नादि-हंसादि स्तोकपद्माकरादिषु । नीरे भाद्यं खगङ्गायां जलजाद्यं नदीष्वपि ॥७०॥ तमसः सूच्यभेद्यत्वं मुष्टिग्राह्यत्वमुच्यते । अञ्जलिग्राह्यता चन्द्रत्विषः कुम्भोपवाह्यता ॥ ७१ ॥ प्रतापे रक्ततोष्णत्वे कीर्ती' हंसादिशुभ्रता | कृष्णत्वमपकीर्त्यादी रक्तस्वं कोपरागयोः ॥७२॥ चतुष्टत्वं समुद्रस्य वियोग: कोकयोर्निशि । चकोराणां सुराणां च ज्योत्स्नावासो निगद्यते ॥ ७३ ॥ रमायाः पद्मवासित्वं राज्ञो वक्षसि च स्थितिः । समुद्रमथनं तत्र सुरेन्द्र श्रीसमुद्भवः ॥ ७४ ॥
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असत् में सत्वर्णन सम्बन्धी कविसमयका उदाहरण
सभी पर्वतों पर रत्नादिकी उपलब्धि, छोटे-छोटे जलाशयों में भी हंसादि पक्षियोंका वर्णन, जलमें तारकावलीका प्रतिबिम्ब, आकाशगंगा एवं अन्य नदियोंमें भी कमल आदिकी उत्पत्तिका वर्णन लोक या शास्त्र में देखा या सुना न जानेके कारण कवियोंका असत् निबन्ध-असत् पदार्थों का वर्णन कहलाता है ।। ७० ।। अन्धकारको सुई से भेदन करने योग्य, उसका मुष्टिग्राह्यत्व, ज्योत्स्ना - चन्द्रकिरणों को अंजलि में पकड़ने योग्य अथवा घड़ों में भरने योग्य इत्यादि तथ्योंका वर्णन करना असत् वस्तुओं का वर्णन करना ही कहा जायेगा || ७१ ॥ रूप कविसमयका अन्य उदाहरणप्रताप के वर्णनमें उसे रक्त या उष्ण कहना, कोर्तिमें हंसादिकी शुक्लता, अयशमें कालिमा, क्रोध और प्रेमको अवस्था में रक्तिमाका वर्णन करना असत् वर्णन कवि समय है । कवि समयके अनुसार प्रतापको रक्त, कीर्तिको शुक्ल, अपयशको कृष्ण एवं क्रोध - प्रेमको अरुण माना जाता है ।। ७२ ।। समुद्रकी चार संख्या, चकवा चकवीका रात्रि में ताओं का चन्द्रिका में निवासका वर्णन, असद् वर्णनके रात्रि में चकवा - चकवीका वियोग, चकोर पक्षी द्वारा देवोंका निवास माना गया है ।। ७३ ।
असद् वर्णन
लक्ष्मीका कमल तथा राजाके वक्षःस्थलपर निवास, समुद्र मन्थन एवं समुद्रमन्थन से चन्द्रकी उत्पत्तिका वर्णन असद् वस्तुवर्णन कविसमय है || ७४ ॥
१. कीर्तिः - ख । २. चतुष्कत्वम् - क, ख ।
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वियोग, चकोर पक्षी और देवअन्तर्गत है । कविसमयानुसार ज्योत्स्नाका पान एवं चन्द्रमा में
ख । ३. ज्योत्स्नापानम् - ख ।
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४. सुधेन्दुश्री
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