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प्रथमः परिच्छेदः 'चन्द्रेऽभ्रकुलटाचक्रचोरध्वान्तवियोगिनाम् । आतिरुज्ज्वलता-वाधिकैरवेन्दुश्महष्टयः ॥५६॥ आश्रमे मुनिपादान्ते सिंहेभैणादिशान्तता। सर्वर्तुफलपुष्पादिश्रीरङ्गीकृतपूजनम् । ५७।। युद्धे तूर्यनिनादासिस्फुलिङ्गशरसंधयः। छिन्नातपत्रवर्मेभरथध्वजभटादयः ॥५८।। जनमे नामकल्याणेगर्भावतरणादिकम् । तत्रेन्द्रदन्तिमेर्वब्धिश्रेणीसुररवादयः ।।५९।। विवाहे स्नानशुभ्राङ्गभूषाशोभनगीतयः । विवाहमण्डपो वेदी नाटयवाद्यरवादयः ॥६०॥
चन्द्रमाके वर्णनीय विषय
चन्द्रमाके वर्णनमें मेघ, कुलटा, चकवा-चकवी, चोर, अन्धकार और वियोगियोंकी मर्मव्यथा तथा उज्ज्वलता, समुद्र, कैरव और चन्द्रकान्तमणिकी प्रसन्नताका वर्णन अपेक्षित है ॥ ५६ ॥ आश्रमके वर्णनीय विषय
___ आश्रमके चित्रणमें मुनियोंके समीप सिंह, हाथी और हिरण आदिकी शान्तता, सभी ऋतुओंमें प्राप्त होनेवाले फल-पुष्प आदिकी शोभा एवं इष्टदेवके पूजन आदिका चित्रण करना अपेक्षित है ॥ ५७ ॥ युद्धके वर्णनीय विषय
युद्धका वर्णन करते समय तूर्य आदि वाद्योंकी ध्वनि, तलवार आदिकी चमक, धनुषकी प्रत्यंचापर बाण चढ़ाना, छत्रभंग, कवचभेदन, गज, रथ एवं सैनिकोंका वर्णन करना चाहिए ।। ५८ ॥ जन्मकल्याणकके वर्णनीय विषय
जन्मकल्याणकका वर्णन करते समय गर्भावतरणादिका वर्णन और जन्माभिषेकके समय ऐरावत हाथी, सुमेरु पर्वत, समुद्र, देवों-द्वारा जयत-जयध्वनि एवं विद्याधर आदिका जन्मोत्सव में सम्मिलित होना आदि बातोंका चित्रण करना चाहिए ॥ ५९॥ विवाहके वर्णनीय विषय
विवाहका वर्णन करते समय स्नान, शरीरकी स्वच्छता, अलंकार. सुमधुर गीत, विवाह-मण्डप, वेदी, नाटक, नृत्य एवं वाद्योंकी विविध ध्वनिका निरूपण करना आवश्यक है ॥ ६० ॥
१. चन्द्रेजकुल-क तथा ख । २. कल्याणं गर्भनिःश्वासमौनचिन्ता-क।
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