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प्रथमः परिच्छेदः
नृपे यशः 'प्रतापाज्ञेऽसत्सन्निग्रहपालने । संधिविग्रह्यानादिशस्त्राभ्यासनयक्षमाः ||२६|| अरिषड्वर्ग जेतृत्वं धर्मरागो दयालुता । प्रजागो जिगीषुत्वं धैर्यौदार्यगभीरताः ॥ २७॥ अविरुद्ध त्रिवर्गत्वं सामादिविनियोजनम् । त्यागसत्य सदाशीचशोर्यैश्वर्योद्यमादयः ॥ २८ ॥ देव्यां त्रपा विनीतत्वव्रताचारसुशीलताः । प्रेमचातुर्यदाक्षिण्यलावण्यकलनिस्वना ||२९|| दयाशृङ्गारसोभाग्यमानमन्मथविभ्रमाः । पत्तलोपरितद्गुल्फनखजङ्घासुजानुभिः ॥ ३० ॥ ऊरुश्रोणीसुरोमालीवलित्रितयनाभयः । मध्यवक्षःस्तन ग्रीवा बाहुसाङ्गुलिपाणयः ॥३१॥ नाधर गण्डाक्षिभ्रभालश्रवणानि च । शिरोवेणीकबर्यादिगतिजात्यादिरेव च ॥३२॥
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राजा वर्णनीय
गुण
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कीर्ति, प्रताप, आज्ञापालन, दुष्टनिग्रह — दुष्टों को दण्ड, शिष्ट- पालन — सज्जनोंको रक्षा, सन्धि-मेल-मिलाप, विग्रह - युद्ध, यान - आक्रमण, शस्त्र इत्यादिका पूर्ण अभ्यास, नीति, क्षमा, काम-क्रोधादि षड्रिपुओंपर विजय, धर्मप्रेम, दयालुता,, प्रजाप्रीति, शत्रुओंको जीतनेका उत्साह, धीरता, उदारता, गम्भीरता, धर्म-अर्थ-काम प्राप्ति के अनुकूल उपाय, साम-दाम-दण्ड- विभेद इत्यादि उपायोंका प्रयोग, त्याग, सत्य, सदा पवित्रता, शूरता, ऐश्वर्य और उद्योग आदिका वर्णन राजाके विषयमें करना चाहिए । आशय यह है कि महाकाव्य में राजाका वर्णन आवश्यक है । कवि राजाके वर्णनमें उपर्युक्त बातों का समावेश करता है ॥२६-२८॥
देवी महिषीके वर्णनीय गुण
लज्जा, नम्रता, व्रताचरण, सुशीलता, प्रेम, चतुराई, व्यवहारनिपुणता, लावण्य, मधुरालाप, दयालुता, श्रृंगार, सौभाग्य, मान, काम-सम्बन्धी विविध चेष्टाएँ, पैर, तलवा, गुल्फ (एड़ी), नख, जंघा, सुन्दर घुटना, ऊरु, कटि, सुन्दर रोमपंक्ति, त्रिवलि, नाभि, मध्यभाग, वक्षस्थल, स्तन, गर्दन, बाहु, अंगुलि, हाथ, दांत, ओष्ठ, कपोल, आँख, भौंह, ललाट, कान, मस्तक, वेणी इत्यादि अंग-प्रत्यंगों तथा गमनरीति एवं जाति आदिका वर्णन देवी महिषी के सम्बन्ध में करना चाहिए ॥ २९-३२ ॥
१. प्रतापाज्ञासत्सन्निग्रह क । २. जात्यादयोऽपि च-क प्रतो ।
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