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अलंकारचिन्तामणि ३. यमक अलंकारका स्पष्ट स्वरूप और उसके भेद-प्रभेद अलंकारचिन्तामणिमें विशिष्ट हैं।
४. कविशिक्षाका विशेष वर्णन अलंकारचिन्तामणिमें समाविष्ट है । ५. महाकाव्य के वर्ण्य-विषयोंका प्रतिपादन विशेष रूपमें आया है।
६. अर्थालंकारोंके वर्गीकरणका आधार काव्यानुशासनमें नहीं है जब कि अलंकारचिन्तामणिमें पाया जाता है।
७. रसी,--रसवत्, प्रेयस् , सूक्ष्म, आदि अलंकारोंका विशेष विवेचन आया है। विश्वनाथका साहित्यदर्पण और अलंकारचिन्तामणि
__ आचार्य विश्वनाथका साहित्यदर्पण अत्यन्त लोकप्रिय और अलंकार शास्त्रकी दृष्टिसे समृद्ध है। यह ग्रन्थ दस परिच्छेदोंमें विभक्त है। प्रथम परिच्छेदमें काव्यप्रयोजन, काव्य-लक्षण आदि हैं। द्वितीयमें वाक्य-लक्षण एवं अभिधा, लक्षणा और व्यंजना, तृतीयमें रस-भाव और नायक-नायिका भेद, चतुर्थमें ध्वनि और गुणीभूत व्यंग्यके भेद, पंचममें व्यंजनाकी स्थापना, षष्ठमें दृश्य-काव्य, नाटकादिका विस्तृत विवेचन, सप्तममें दोष निरूपण, अष्टममें तीन गुण, नवममें वैदर्भी आदि रीतियाँ एवं दशममें बारह शब्दालंकार, सत्तर अर्थालंकार और सात रसवदादि अलंकार, इस प्रकार नवासी अलंकारोंका निरूपण है।
इस एक ही ग्रन्थमें काव्य के दृश्य और श्रव्य दोनों भेदोंका विस्तृत निरूपण हुआ है। यद्यपि यह सत्य है कि विश्वनाथके इस साहित्यदर्पणमें मौलिकता कम है और संग्रहकी प्रवृत्ति अधिक है। दृश्य काव्यका विषय नाट्यशास्त्र और धनंजयके दशरूपकपर अवलम्बित है। इसी प्रकार रस, ध्वनि और गुणीभूत व्यंग्यका विषय ध्वन्यालोक और काव्यप्रकाशसे प्रभावित है। अलंकार प्रकरण विशेषतया काव्यप्रकाश और रुय्यकके अलंकारसर्वस्वसे अनुप्राणित है । अलंकारोंकी संख्या एवं उनका पूर्वापरक्रम भी रुय्यकके तुल्य है । शब्दालंकारोंमें श्रुत्यनुप्रास अन्त्यानुप्रास और भाषासम, ये तीन नये अलंकार लिखे हैं । अर्थालंकारोंमें निश्चय और अनुकूल ये दो नवीन अलंकार आये हैं । साहित्यदर्पणमें काव्यप्रकाश द्वारा निरूपित काव्य-परिभाषाका खण्डन किया है। इन्होंने 'वाक्यं रसात्मकं काव्यम्' द्वारा काव्यकी आत्मा रसको कहा है।
___अलंकारचिन्तामणिमें भी काव्यकी आत्मा रसको स्वीकार किया गया है । लिखा है 'रसं जीवितभूतम्'' अर्थात् काव्यका जीवनभूत-आत्मा रस है। काव्यकी परिभाषामें भी 'नवरसकलितम्' कहा गया है। इसमें सन्देह नहीं कि अलंकारचिन्तामणिमें निरूपित काव्यपरिभाषामें गुण, अलंकार, दोषाभाव, रीति एवं रसको यथोचित स्थान दिया गया है। यह परिभाषा एकांगी नहीं है, सर्वांगपूर्ण है । साहित्य
१. अलंकार चिन्तामणि, ज्ञानपीठ संस्करण, ५८३ । २. वही, १७॥
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