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अलंकारचिन्तामणिः
प्रथमः परिच्छेदः श्रीमते सर्वविज्ञानसाम्राज्यपदशालिने। धर्मचक्रेशिने सिद्धशान्तयेऽस्तु नमो नमः ॥१॥ जगदानन्दिनी तापहारिणों भारती सतीम् । श्रीमती चन्द्ररेखाभां नमामि विबुधप्रियाम् ॥२॥ श्रीमत्समन्तभद्रादिकविकुञ्जरसंचयम् । मुनिवन्धं जनानन्दं नमामि वचनश्रियै ।।३।। अलंकारमलंकारचिन्तामणिसमाह्वयम् । इष्टालंकारदं सूरिचेतोरञ्जनदं ब्रुवे ।।४।।
हिन्दी अनुवाद मंगलाचरण-शान्तिनाथ भगवान्को नमस्कार
सम्पूर्ण विज्ञानरूपी साम्राज्यपदको सुशोभित करनेवाले केवलज्ञानी, धर्मचक्रके स्वामी, धर्मोपदेष्टा, धर्मचक्रप्रवर्तक एवं अनन्तचतुष्टयरूपी अन्तरंग और समवशरण, दिव्यध्वनि आदि बहिरंग लक्ष्मीवान् श्रीमान् शान्तिनाथ भगवान्को नमस्कार हो ॥१॥ सरस्वती-जिनवाणीको नमस्कार
संसारको आनन्द प्रदान करनेवाली, जगत्-सन्तापको दूर करनेवाली, विद्वानोंकी प्रिय, चन्द्रमाको रेखाके समान स्वच्छ प्रकाशमान-श्वेत वर्णवाली और सभी प्रकारकी शोभासे युक्त भगवती सरस्वती-जिनवाणीको नमस्कार करता हूँ ॥२॥ समन्तमद्रादि कवियोंको नमस्कार
वाणोकी समृद्धि-प्राप्ति करनेके हेतु-कवित्व-सिद्धि के लिए मैं मुनिसमूहसे वन्दनीय सम्पूर्ण मानव-समाजको आनन्दित करनेवाले एवं ज्ञानादि लक्ष्मीयुक्त समन्तभद्रादि श्रेष्ठ कविवृन्दको नमस्कार करता हूँ ॥३॥ ग्रन्थप्रणयनकी प्रतिज्ञा
इष्ट-अभीष्ट अलंकार ज्ञानको प्राप्त करानेवाले और विद्वानोंके चित्तको अनुरंजित करनेवाले अलंकारचिन्तामणि नामक इस अलंकार ग्रन्थकी रचना करता हूँ॥४॥ १. जिनानन्दम्-क।
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