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प्रस्तावना
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एक अर्थ तो यह हो सकता है कि जिस वाक्यमें रस निहित हो वह काव्य है। इस अवस्थामें रसकी काव्यमें अनिवार्यता सिद्ध होती है। इससे काव्यका क्षेत्र अत्यन्त संकीर्ण हो जाता है। अनेक ऐसी काव्यकृतियाँ जिनमें रसको पूर्ण निष्पत्ति नहीं है पर अलंकार और उक्ति वैचित्र्यका चमत्कार विद्यमान है, काव्यश्रेणी में परिगणित नहीं की जा सकेंगी।
इन सभी काव्य-परिभाषाओंको अपने भीतर समाविष्ट कर अलंकारचिन्तामणिमें जो काव्य-परिभाषा अंकित की गयी है वह अतिव्याप्ति और अव्याप्ति दोषोंसे रहित है। इस ग्रन्थमें शब्दालंकार और अर्थालंकारोंसे युक्त शृंगारादि नवरसोंसे सहित, वैदर्भी इत्यादि रीतियोंके सम्यक् प्रयोगसे सुन्दर, व्यंग्यादि अर्थोंसे समन्वित, श्रुति-कटु इत्यादि दोषोंसे शून्य, गुणयुक्त, नायकके चरित-वर्णनसे संपृक्त, अथवा किसी विषयसे सम्बद्ध उभयलोक हितकारी एवं सुस्पष्ट काव्य कहा है । यह परिभाषा सभी प्रकारकी काव्यकोटियोंमें घटित होती है। अलंकारचिन्तामणिमें शब्दालंकार, अर्थालंकार, रीति, वृत्ति, गुणदोषशून्यता, रसोंकी स्थिति एवं चमत्कारको काव्यस्वरूपके अन्तर्गत परिगणित किया है।
काव्यकार णोंके विवेचनमें भी प्रज्ञा और प्रतिभा इन दोनोंको स्थान देकर अजितसेनने अपनी मौलिकताका परिचय दिया है । अलंकारचिन्तामणिके अध्ययनसे यह ज्ञात होता है कि शास्त्रीय कारणोंके अतिरिक्त आत्माभिव्यक्ति, सौन्दर्यके प्रति आकर्षण
और कौतुकको भी काव्य-रचनाका प्रेरक माना है । काव्यके तीन प्रकारके कारण हैं१. प्रेरक २. निमित्त और ३. उपादान । प्रेरक कारण कविको सामाजिक, पारिवारिक या वैयक्तिक परिस्थितियाँ तथा उसकी प्रकृति है, जिससे उसे काव्यरचनाकी प्रेरणा प्राप्त होती है । निमित्त कारण कविकी प्रतिभा है। यह प्रतिभा कविकी उर्वर कल्पना, सूक्ष्म सौन्दर्यानुभूति, संवेदनशीलता, शब्द और अर्थ तत्त्वकी सूक्ष्म परख और सहज स्वतः अभिव्यंनशीलताके रूपमें देखी जाती है। उपादान कारण लोकशास्त्रके व्यापक ज्ञान, सत्संग, श्रवण, मनन और अभ्यासके रूपमें माना गया है। ये तीनों कारण अलंकारचिन्तामणिमें संकेतित हैं।
अलंकारचिन्तामणिमें अलंकारोंका प्रयोग नितान्त स्वाभाविक माना है। किसी तथ्य, अनुभूति, घटना या चरित्रकी प्रभावपूर्ण अभिव्यक्तिके लिए अलंकारोंका उपयोग अपेक्षित है। अलंकार, वाणीके साधारण कथन न होकर चमत्कारपूर्ण उक्ति हैं । ये कथनकी ललित भंगिमा हैं । जिस उक्तिमें कोई बांकापन मिलता है, वही उक्ति अलंकार बन जाती है । उक्ति-वैचित्र्यके अनेक रूप हो सकते हैं। ये ही विभिन्न अलंकार हैं। यही कारण है कि अलंकारचिन्तामणिमें अलंकारोंके वर्गीकरणका आधार निरूपित किया गया है। साम्य, विरोध, शृंखला, न्याय, कारण-कार्य-सम्बन्ध, निषेध और गूढार्थ प्रतीतिमूलक ये चमत्कारके आधार हैं। इन आधारोंपर ही अलंकारोंके विभिन्न वर्ग निश्चित किये गये हैं। अलंकारचिन्तामणिमें प्रतिपादित अलंकारोंकी परिभाषाएँ
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