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प्रस्तावना
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में जिस प्रकार आचार्य हेम गुण, दोष, अलंकारका अस्तित्व रसकी कसौटीपर स्वीकार करते हैं, उसी प्रकार अजितसेन भी। इनकी काव्यपरिभाषामें रसका समावेश किया गया है।
__ मम्मटने ध्वनिको महत्त्व दिया है और हेम एवं अजितसेन रसको महत्त्व देते हैं। अतएव रसवादीकी दृष्टिसे काव्यानुशासन और अलंकारचिन्तामणि दोनों तुल्य हैं।
अलंकार प्रकरण में हेमचन्द्रने उन्तीस अलंकारोंका प्रतिपादन किया है जब कि अलंकारचिन्तामणिमें बहत्तर अलंकार प्रतिपादित हैं। अलंकारोंके पारस्परिक भेदोंका निरूपण भी अलंकारचिन्तामणिमें विशिष्ट है। उपमालंकारका लक्षण काव्यानुशासनके उपमालक्षणकी अपेक्षा विशिष्ट है। काव्यानुशासनमें "हृद्यं साधर्म्यमुपमा" अर्थात् सौन्दर्यांग हृद्य रूपसाधर्म्यपर जोर दिया गया है। पर अलंकारचिन्तामणिमें-"स्वतो भिन्नेन स्वतः सिद्धेन विद्वत्संमतेन अप्रकृतेन सह प्रकृतस्य यत्र धर्मतः सादृश्यं सोपमा"' अर्थात् स्वतःसे भिन्न, स्वतः सिद्ध विद्वत्संमत, अप्रकृतके साथ प्रकृतका जहाँ धर्मरूपसे सादृश्य रहे वहाँ उपमालंकार होता है। यहाँ स्वतः सिद्धेन पदसे उत्प्रेक्षामें और 'स्वतो भिन्नन' पदसे अनन्वयमें उपमाके लक्षणकी व्यावृत्ति सिद्ध की है। धर्मतः पद द्वारा श्लेषालंकार और सूर्यमिष्टेन पद द्वारा हीनोपमाका निराकरण किया है। अतः उपमाका लक्षण काव्यानुशासनकी अपेक्षा अधिक व्यापक है। हेमचन्द्रने अनन्वयका समावेश उपमामें, और तुल्ययोगिताका समावेश दीपकमें किया है ।
शब्दालंकारोंकी दृष्टिसे तो अलंकारचिन्तामणि अनूठा ग्रन्थ है। इतना स्पष्ट और विस्तृत विवरण काव्यानुशासनकी तो बात ही क्या, अलंकारशास्त्रके किसी एक ग्रन्थमें उपलब्ध नहीं होता । काव्यानुशासनमें दृश्यकाव्यका विवेचन अलंकारचिन्तामणिकी अपेक्षा अधिक है। इसी प्रकार कथाकाव्यके भेद भी काव्यानुशासनमें अधिक वर्णित है। वाग्भट द्वितीयका काव्यानुशासन और अलंकारचिन्तामणि
यह काव्यानुशासन पाँच अध्यायोंमें विभक्त है। इन अध्यायोंमें काव्यप्रयोजन, कविसमय, काव्यलक्षण, दोष, गुण, रीति, चौंसठ अर्थालंकार, छह शब्दालंकार, नवरस
और उनके विभाव, अनुभाव, व्यभिचारीभाव एवं नायक-नायिकादि भेद निरूपित हैं। विषयसामग्रीकी दृष्टिसे यह काव्यानुशासन अलंकारचिन्तामणिके तुल्य है। जितने विषयोंका समावेश इस काव्यानुशासनमें किया गया है, प्रायः उतने ही विषय अलंकारचिन्तामणिमें भी पाये जाते हैं । अलंकारचिन्तामणिमें काव्यानुशासनकी अपेक्षा निम्नलिखित विशेषताएं प्राप्त होती हैं
१. चित्रालंकारका विशेष वर्णन आया है।
२. चित्रालंकारके बयालीस भेदोंका काव्यानुशासनमें अभाव है। १. अलंकारचिन्तामणि, ज्ञानपीठ संस्करण, चतुर्थ परिच्छेद, पृ. १२०, पद्य १८ के आगेका गद्य ।
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